पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३४६

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। संख्या ३] पुस्तक परिचय। २१३ पुस्तक-परिचय । का कार्य किया है। इसके लिए उनसे अनेक साधुवाद । पुस्तक प्रकार प्रम रोगो से मिझती है। १-पारोग्यता प्राप्त करने की नयीन विधा। खासाइत सम्मा । रापर होने की मुमसिक पुस्तक "Noir Science of Bealing" पारिन्दी-अनुवाद है। प्रमुपादक है, मुराशकार के प्रोत्रिप हममम्प.पी.ए.. पप-प५० वी.। २-मेल-प्रेस, जयपुर, की दो पुस्तकें । मकारक . पति रामस्वरूप शम्, किसरीम, मुगदावाद। स सेठ गाभरणी संतान मे गपुर के स-प्रेस में पपी हुई हो मक्य २५रिना बिलकी कापीका और भिखार पुस्तक मेजने की कृपा की। एक-धीमद्भगवद्रीना। का। परसम्पा सांपी बीहार की मुन्शी हरीराम भार्गव में गीता का प्रमगार योग में मा-विकिस्सा .पूर्व मसिर है। पपि चिकित्सा का .. म्यिाग्मी का पह दिन्नी-पान्तर है। इसके स्पान्तर- गोतमारे पास प्रन्यों में भी मिखार पोप कार पण्डित वारेमाल । गीता भट्यां प्रध्यापका विश्न मी मात प्राचीन काम से किसी न रिमी रूप में मनवा इसमें, कपाटंग पर, सिया गमा है। मापा | अब-चिकित्सा प्रेमानते प्राये पर इस चिकित्सा में सीधी-सादी साके सममने पाग्यो । संक्राशयों म । विज्ञान का स्म नवाजे सम्मनी निवासी रास्टर ने भी नहीं मिगा गपे ६, पर इसमे भावार्य समझने में सपा १. स रमा का पिता पहले सरसठी बहीं मानी । लिपी तक इसे पा कर पाम रठा सकती है। । में-"-चिकित्सा" माम से मिस प्रकार प्राकार बड़ा, -सक्या ५८, मूल्प । पाने है। दूसरी मेक्षिप्त विवरण पुस्तामा भी निमारपिन पुस्ता मझदपण। मामा मागकण्ठ पाश्रम में योग का । प्रेस (प्रमाग) से मिपा । मोत्रिय हप्पमापीर मो तार भीयुत हरीराममी भर्गव को सममाया था इसी को ने समप्र प्रन्यकामवाद , प्रा. मागवली मे गुरु सिप्प के संपाद स्प में इसमें लिखा। शित किया था। पुलको बोगने मे वा पा । सिरे महा है महामामोपण पोहा प्रममाटते ६ ममुमन । यो मस्करण नियमाप्रमतुत पुस्सी गधनबाद मे माने गपे पोग-सिमाम्सो का नाही यासका । काहिली-अमुवाद पुरता में मम पुरकका विषय मी प्राचार का संकपा ५८, मूल्य २५ पाना रोनो मा एटने पाया रोगों की उत्पत्ति पार की रिसा पुस्तकें-मुपरि संर, बेल, अपपुर, से मिल सकती है। । भादि पा सबिम्स बर्षन । पिस हो सममान के । सिए चित्र मी रिसे प र लाने का मत पो- २-मिपिटादर्पण । पाल मेमेगा पृ-पक्या , पंथी हाररी से नहीं मिलता । वे सब रोगों का एक ही ११.+ ++॥ गुस्प । पपा है। सेना-पीयुत । कारण मानते सारण कामाम ने अपनी परि- रासबिहारीजाब दास, मदी। आसानी से माय । यह इस । भाषा में विजातीय इम्प" रगता। मित्र मिड रोग इपी पुस्तक का पहला पीर परिक्षेत्रों में विभक। | "पियातीय रम' के कारण पर दो रोग कशाप पारे परिप्षेत्र में मिपिडाका मापार प्राचीन इतिहास । एका चिमिमा मी एकदोहोमी पारिप राय ने कमरे में बगोरो का प्रचाम्स, वीमरे मंसोही सारे रोगों का नायक माना है। इस विषय में बमान मिधिमा वर्णन चौपे में पम्मी प्रपन का इस पुरा में प्रफी तर निस्पण किया गया है। स्पावधान और पांच में प्रामपरी भी मधु सूची है। अमुपार माग मा । मरे संपरा में मिथिला से सम्रम्प रसनाजी मापा समीना-रामी बात। पग पर मामा दिप भार भापा में संशोधन प समारेरा इसमें है। इस विपी पर ही पछी पुन वा चाहिए। भारले परिभान में बिली गई है। मारा विहारीपन बिपे ____मापा में अभी ही की मारोप पुरककी पापारम्म में पूर्ण एक पादेपत्र मगाना मारेरता कम नहीं करते। मंप्रियमी ने पारे पुप्प पड़ा।