पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३५

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. . . . . ., सरस्थती। ' [ भाग दोनों में से पाप रिसको सम्पूर्ण कदंगे माता को विश्यास में संसार की उत्पत्ति रदस्यपूर्वमानी गई या मंय को दोनों में से एक को भी पाप सम्पूर्ण पार अन्त में यही कहा गया है कि समार नदी कह सक्तं । इमलिए यह मिर हुमा किआ कारण चाहे जो पुण्दो उसका पान प्राप्त पार सम्पूर्ण उमरा यह लक्षाप दाना चाहिए-म असम्भय है। आ प्रशिक्षित पार प्रसम्म पेना पदघेतन, म अरन एक., म अनेक, न मेदपाया, शक्तियों का भूत-प्रेत करते हैं। धर्मिष्ठ दागने म प्रमंद याला, न मसाररूप, म समार-प। देवाचता फहते हैं। मास्तिर उन्हें पर मानो ऐसी विलक्षण यस्तु का मानना मर्यया प्रासम्मपरिसीम किसी रूप में उन्हें माननं समी ६. गामी मे दमारे उपनिदी में श्यर (प्रादि-कारणा) रहस्य फिर भीज्यों का स्पो हीरासापान पी के स्वरूप प्राधि के मिषय में “म इनि. म रति," का जाति संसार में काम करती दिगा तो (मगि मैति। कहा गया है। पद प्रयदयात जानी माँ का साती म यदि प्रादिकारण धनम्त मामा जाय तो जिसमें सिमान्त को प्राधार मान स्टेन से दी धर्म पर पनन्त शान्ति (Infinite Poner) ६ पह सर कुछ विधाम का मेल दो साता है। कर माना है। जिममें अनन्त दया है यह पाप की उम्पत्ति रोक पाता है। यदि पनन्त गायनील हामे कानोमस एम.

  • पाल पापियों को पदमा उम्प लिए पाय-

परमा पनन्त यानीटाने के कारण पारिपी को क्षमा करना भी भापदपक । यदि पमना माम नम्र निवेदन । प्रमाय मे तनेपाली ममा दुर्घटनामा माम मातामा अनन्त गनिमेशाग उनका रामना मनी रामभो पाई। भी करिए सम्भव ६ । पारे अनन्त पानी समाm प्रेरणा पापपामा समापारि पाप मित पारिप । पीपरि उसाना उगाही प्न मेता भाग भगा । सममें धनत भार सम्पूर्ण मापता महौं । माफिर मोने पर परतीम में लापरपर उमर पाया में कपन " मा मink मात म्गमकता की मिदिमा। पर nिit सायिक गनी पम्मो में दो या पाई माया ममार। मातीपा पर शि. मेगा में पामुन पापपरा, पार पारादि । मां पर पार मानि ARTI पास पीपराभरान मा गरमान माग fruary पनो पेश नगी पर गिर Mtatun Patr पार Or Te met Im ving ! HERE मेर गमननादरम्मयोगार पामुgan Timirenपमा पर मीन Mearnk चमो पर मामी पर पाश्मिर मामा पापा