पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३८६

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. संस्कृत साहित्य का महस्व । पंपा मानते कि सम्मत-माहिस का सिमसिसा इससे कई मरी । इस टि से संस्कृत साहित्य का पामर कम पार गुने प्राधिक समप से परामर मा मा म मायम भी मामा । भाभी दाही मही। पमी एक बनके मामय का पारा वितमी पिनी पड़ जाता । मुनिए, प्रामा में तो कभी दूसरे प्राना में, यो मनी, मोईन मारा सम्हात-सादिस्म ईमाई १५.. वप' पहले से, कोई प्रन्य खिला ही गया । परी मारत में अफगानियों में माम तक, पता-पर मा पा साप्रोत् संस्कृत यो पास रहरी सदी में मचाया पा पर दुनिया में अपना साहिल, अंगोत्री मारित्व श्री अपेता सात गुने समय से सामी महीं रमता । पर इस समय मी गुमराव पार मात्र मझुवा-गाह, अध्यापक मैक्सममा प्रक्षबत्ता माते में नियों में साहिरप की भूमि की। मारत के पश्चिमी मासों कि सातापी ATA-साहित्य मना दिवा में माधवाचार्य ने सपा दरिणी माता और मिपिता में देता की मासा टूटी हुई हि पाती है। ईसा के रामानुज के गिप्पा में भी सहस-साहित्य के स्वर की पापापी सरी से ईसा की भी सदी ता-बान-मर्म के बढ़ाया । बारहवीं सदी में सारा भारत मुग़ने। भार पराना ग्यमकाम से गुप्त राजामौ पा ~म्से हडित प्राममो से परिवाया । हिम पर भी फर्णाटक पाने हैं। इन सात रात में मिषे गपे जितने शिवाय देश में म-माधाग्य, इजिद में पंवानगिक, मिभिन्ना में पापे ग ऐसी भाषा में मिलते मिसे प्राकृत पदेपा पार सम (जीसा) में तो क्तिने दी मेरो में रूप में संतन कर सम्ने।। धी सदी पार से अन्य सिप विप कर साहित्यको पुट किया। महत का पुनहामीबम मानते हैं। इतना सा भार इतमा भारणित मन्म-मामा फ्या परम भापा-समापी परिवसमकारबाही प्रप्यापक हमारे सिप पिपोगी नही सम्र । सिप्से हमारी मापना- मस मगर पर मानकी इस सम्मतिका शक्ति पुरी , पिपार करने के लिए इम पर साधन- भावर पिशनी में ही या योनि विधि में सामग्री ली । ग स कर में अपने प्राचीन गारपा मिपे गप कितने ही प्रग्य प्राप्त ए ईमा के पासे अभिमान ने पगाता । इसमे म जान सकते कि दूसरी सदी में-पुष्यमित्र रामचका में-पतजमि में हमारा धम्भिव मिसमा मानीन है। सम्पती वर्गमामा. अपना महामाप सिमानास माय सिकन्दर का सम- बिना बड़ी विचित्र है। रमवारण की रोमी मपूर्व। . . पालीन पा । रमी कद्राप्त मन्त्री, बरिष्य, (चाणक्य) रसका भापा-पान्दर्य मी बहुत पधि । मेमन में पर्पनात्र की रचना की। प्रमिट मारककार भास की माहिप भवकिम से हम पर नान मरने कि पोस- म्पाति पामिदास से कम नही । इमी भास मारक के पास श्री मापा लिप्त प्रकार परबती रदनी पार भवरवधप्पि प्रिय में पाये जाते हमारे मित माहित्य की भाषा किस प्रकार प्रमही :-सा रूप किरिक्य के पामे भास मे सपने पम्पों की सादी से पानमा बना पता। मृत साहित्यप्रापमान धीम, गाविस, तितरमारय मारपशारा संमगे प्राचीन इतिहास राजाम में पर ब म्प शिसपसापरमेमरीसदी लाता है कि किस प्रकार प्राचीन भाये पोरे धीरे अपनी होमग गमे । मशामिकमा प्रभारी मानमिग परते गरे, झिप प्रसार पे बम प्रम में एक पाप मरापान-सम्पदाप मस्पापसभागान, मागान मे मनसों की सोम गा गर्ग, रिम प्रहार पिसे शिष्य भाव पर नोयन प्रतिमा परनी मानने वाले प्राभाग माप, गहि मि पर में करतीमरी मीना अपने मम्मोवीपमा की। भी रिचार गटगीय मिसानों का मान भी मिए, सम्ल मया की रचना परापर सीपरी प्राई पस। है। गरियो में भाग नीशमन गिल, धार्मिक, मामा- पहलमादित्य पा र पररा। गरी र, सामगिर नपा शिप-धिपसिना में लहर है। यांग में मनोमानी पर पर-पुपा दमा । निम पर भी गारन-माहिम्प की पासा पेन्प भी मार- कार मी शिप पर गिरे