पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३८८

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सम्कत-साहित्य का महाय। विपप पर वियर करके विपरीत-मतवादियों का प्रम दूर मी वराहमिहिर ने अपनी महित्य में लिपा मारे प्रो बी पेश करता । स्मृति-मयों में तो कितने ही ऐसे. मत जिनसे ज्ञान मर्थशास्त्र। होता किन विपर्यों पर धार मी बोबडे माप विमाम घे। पापमप्य कामपायुद पार शामिका मात्र समे पाने में भगानी कोता है। क्योंकि इस बात के प्रमाण कि प्राचीच मारतमिवासी पग-पामम कितने ही मोग करते हैं कि यह मापुनिक । पूरपके और परा-चिकिरसा में भी मबीए थे। इन प्रयों में बाबा निवासी इमरे मम्मदाता को गाते हैं। बाई दो ही सदियों सायी कि प्राचीम शपियों ने कितनी पिम्ता पार किसने से में महमे इसमें भारचर्य-ममक गति र दिसाई है। __परिश्रम से पानी के स्वभाव प्रावि का शान-सम्पादन किया ___भारत में शादी के मुम्प चार दिमाग किये गये हैं। पा राम मनन और पाहन मिपम पमाये मे समारोगों (१) धर्म, (२) मर्य, (३) काम और (५) मौष । इनमें पाये सपा उनकी चिफिल्मा का नाम मस किपा पा । पाक-शान मीन का सम्बन्ध सांसारिक बातों में मार प्रतिम का पर तो किमी दी पुरुके। ये पार बमस्पतियों के धार्मिक बातो से। पहले तीन में से सम्पत्ति-शामका सम्मान नों, गो. वाहा, पत्तों, रखों को और पीसी र सांसारिकपात से बहुत अधिक है। सात-साहित्य में इस स गुस-पर्म का विवेचन ग्ममें मिखता है। भिन्न भिन । विषय पर बहुत बड़ा प्रन्म विद्यमान है। पारिक्य का सम्पो रे मांस के गुएनापों का भी उनमें वर्णन।। पर्यशाप। ईसा के पास पीपी सदी में टिक्प मे रसम रचना की। इसमें उसने अपने पूर्ववती सम्पचि-गाके. शास्त्रीय विषय । मामा-भोगगन किया। इसी एक बात से सहमत रामका ज्ञान दो ही स्पा से प्राप्त किया जा सकता। हो सस्ता है कि इतने प्राचीन समय में मी भारतमिषाप्ती (1) निरीपण पा (१) प्रपोगशारा । भोगो काममा प्राधे गमीटिश और सम्पनिमा प्ररपे ज्ञाता थे। हमारतनिवामियों ने शासीय विषयों पर विचार किया भारिप में अपने सम्पति-शाम में (1) रामसिक सम्पति- सी, पर प्रपेग करना पेन नामते थे। पद निरा भ्रम है। सास (१) राम्नैतिक तमाम (१) साधाय रामनीति देखिए, गयित-शार में निरीषय ही प्रधान है। निरोपण (.) पुरा (२) मेमा-साटम (२) शासम-बमा (.)भ्यास- सीवन पर इसकी परि मारवगसिपी को मापीन शासन (क) बोप () वाशिम्प-म्परसाप (1.)-कार- समय की सब जातिपो से भपिक हित-गायका ज्ञान पा । बाने का पानों भादि के माप का विवेचन किया है। मानामित में परामसव की रीति का भाविकार तों में इसे पोड़े में मौका सबसे कि राप-प्रबन्ध सिए सभी किया । बीज-गणित में वर्ग-समीरय मोम की गति भावरया विपनों का मसमें समावेशप-प्रकार-विषयक का मनुमण परिवमलामी में भारतीयों की मे परम Arth 'सम्पतिनगम पा भी वात्स्यायन ने अपने काम-मय पे इसमें कुछ फोघर होने पर कर लिया है। विरोणमिसि 1 माग में पाप मिता । म भाग का नाम :- में मारपों में प्रप्ती पति की थी । म भनेक प्रकारे भाषाधिनय । बस ऐक्ने ही बातो माता कि प्राचीन को काहान पा। भारत में हम शासकी पत्तिमायो ममप में हमारे पर्दा गप-मान्य मे बता पा । में ग्रामरय हुई। भारत-निवासिप होप मेगा. मेममा। फनो को प्यानपा की गई। चीजों की ममा किस तरह मी निमिया बाज-पेटी मनानी पानी पी परि माया परमों पादिए, नौकर-चारीतम मादिका प्रम्प मे पीस में बनाई जाती थी । इसलिए चार पमा लिए. रमाई मास्या क्यि रंग में दामी चाहिए. पीकी भूमि को मापने की अपर पती दी। इमाम पर के पासपास पाग-बागीचे किम सामगाने चाहिए. नको रेगनागित-सम्प नी भि. मि पारति जान को गोरखा पिता मी पारिए, परिवार के भोगी मा। पानिए मममसान की मी कसरत करनी . से पानीको मा 'पद्वार परमा चाहिए.एली सा थी। इसमें स्पोतिर शाम काय हा भस ती का वर्णन में पिर परोपए न विदेशी शनिमा पर्नेमा में