पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संख्या १ पाटन के जैन पुस्तकमाण्डार। VE + ++ अन विचार कीजिए कि माहिप्मती कहाँ होनी के रहने वाले कहलाये। पिपापुराण में लिमा पाहिए । नर्मदा-सट पर तो इसका होना प्रायश्यक कि स्थरिणी स्त्री को मदिपी कहते है पर उसके दी है, क्योंकि नगरी के पास नर्मदा स्नान करते स्वैराचार को न रोक्ने पाला पुरुष माहिपिक कहा दुए दी कार्तवीर्यार्जुन मे राषण की देसा पार कैद जाता है। इस वर्णन से तया महामारत के पूर्वोक्त किया था। पर रघुवंश के पूर्वलिखित श्लोक से इलाकों से इनके माम की व्युत्पत्ति मिद होनी है। इसका फैयल नर्मदा तटस्थ होना ही नहीं जान माहिप्मवी-नेय के विषय में ओ पुछ मुझे पड़ता, परम्ब मर्मदा से घिरा रहना भी आन पड़ता पात है यह लिख दिया। निर्णय करना पाठको का है। उस लोक में रेषा या नर्मदा की उपमा, · काम है। मैं स्वयं पनिटर तथा फ्लीट साक्ष्य के माकाररूपी नितम्यों पर शोमा देने पाली काञ्ची से मतानुसार मान्धाता या मोहारेयर को ही प्राचीन दी गई है। अर्थात् माहिष्मती नगरी के माफार रेया माहिप्मती समझता है। नदी से घिरे रहने चाहिए। यह घर्मन मद्देश्यर के . परि रामयन्द दिधेकर विषय में ययार्य नहीं । नर्मदा के.सीर पर पोझरेभ्यर दी एक ऐसा स्थान है जो नर्मदा से चारी पार पाटन के जैन पुस्तक-भाण्डार । घिरा है। फिर भी हरिपंश में, सही इस नगरी की स्थापना का वर्णन है, लिखा है कि धिनय पार *****दुम्टाम में जितने पुरातन पुस्तम्-भावा प्रस (सतपुमा) दोनों पर्वतो के निकट यह पुरी सब में मैनों के भागार अधिक साई गई। ये दोनों पदार नर्मदा के पास पहारे- पुराने सानो की रिशेप पी श्यर के जितना निकट है उतमा महेश्वर के नहीं। HAREती . पहा पोडा बहुत पुर- यहां मिले ए ताम्रपत्र पर माहिष्मती का नाम सपा अपरप ही होता है। परन्त लिम्मा दोना भी एक पुष्ट प्रमाण है। माहिप्मती पाटन, सम्मापस (Cambry), सप्रमेर पार महमापार मगरी के पश्चात् सहदेय ने जीता मा त्रिपुर या में बहुत का संपा।सी सरासी पाने तो बीमड़ी, तेपर ग्राम भी इसी के पास है। "कायेरीकी पार भरत, मेवा, पीकानेर, मुर्शिदाबाद पापि पानी में भी फरफे"-यदि महाभारत का यह पाठ ठीफ हो तो पोप पुम्तम्-माबार थे। पर आप पा मापाप मी इस स्थान से एक मील की दूरी पर कायेरी नाम मी महा के भनेऊ प्रम्य रंगक्षा, अममी मावि पप गपे की छोटी सी मदी भी नर्मदा में गिरती है। मुच- हिम्युमगन में अब रेख पर लिए भारी में पुराने मैन-ग्रम्प वर्षमान । इन नगरी में पारन सब में पुराना निपात का लेप भी इसके विषय महीं। क्योंकि है। इसके बाद मायन, संयममेर और मदमसार का यह भी लगमग पैठण से १९५ मील पर पार मम्पर प्रमान मेग पाटनकी मातापिप में उज्जैन से ७० मीर। मिपाता। मादिप्मती निकट का प्रदेश मदिपमण्डल पारन मपरितपुर-पारस पा मिरपुर-पारन मामा , नाम से प्रसिदपा पार पदो के लोग मादिपिक है।मुमतमा ने अपनी पुस्ट में इसका नाम मारणा फादलाते थे। महामारसके भीष्मपर्य में ये टोग मिरा । पाटन भी पिरोप यानि बाप रे मन "अनपदा पक्षिणा" कई गप पार मार्कण्डेय पुरा- मार ther . पुराणकार भीरनको"दक्षिणापथपसिमा" कहते हैं। पुराना इतिहास । . मर्मदा के दक्षिण तट पर होने से ये दक्षिणापप पारे भागा मि मारने