पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४०८

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• . संख्या ४ ] प्रापदापों का स्वागत। पीपे म कही पपवानी। पाती, पामो!भामो! मैं बीमा या काम करना पड़ा। मागत के लिए समिट पर भाम पta मुपस में न बिपाभो। माती, प्राची! भाभो ! तब चरयों की बलिहारी, परमाय मम्पना प्यारी । निसका सिरा मारी. इमरी सिजनमागम मुमको भी सुपप दिया। भानी, पायो ! भागे ! 'क्या मो दुरुप साहूँगा, मन मारे मान रहंगा। में मी प्रभोर मा ! ! म कमी गंगा॥ चाई विना तापामो। माती हो, मामा मामी। पदि पता विपम म पाया गरमीका कम्मि कमाया। मल मुसबपार में पामा, ये मान मनने पासा ।। मानो गिएता पड़ाना।। माती हो, भापो ! पामो ! तुमसे इस अदित न होगा, सित होगा अमित न होगा। • परा-शिल्पा परितमोगा नियः मन मुक्ति मोगा। time बायो। भाती हो, भाभो ! भाभो ! परि भूख में मताती। क्यों करते ती पाती। मेषा विकास स्पा पाती, पाममा मामी. मित मई मुम पामो। भावी हो, मापी ! माओ! । जिन जिनके पास गई गगनकी मति गई नई दी। • पिनीची पबपी होम ग्मको सुपा हुई दोम प्रतिक मुझे दिलाया। माती हो, भाभी माओ! तुम रोम पाको मिपा मुझेन इसकी । बत रेवो ऐसा शिपार में पाम परोया। सऐमा गुर बालापी। माती हो, माया पानी पदि राम मबन को गाते , या मनी मि माते? या ईसा सूमी पासे , पदि तुम भपनाने । साती में मुपर दिखामा । माती दी, मामा मामी! मिमप हूँ पा कि राहूँ हूँ पारा । जीवित पा कि मरा हूँ,म्टा हूँ या कि परा है। म मा, मुपात मो, साम्रो। मानी, भाणे ! भाग! द ऐमा या पानाविध मा रोज कामा। प्रम में मुझे मराना, सरसाम सईव प्रतामा । भीवन की स्करायी। माती, भामी ! पापा! मगर में होती : सर पड़ी गामिण माती। 7 समर म मा पोती । अगली सप पानी . ___ सीपमा अगायो। . भाती, भामा पा! तुम हो पानी मारी होगी न मुझे क्यों प्यारी ! प्रिय मित्र, पर्म, एनि, मारी-इनकी परमानंहारी मामन, पुन पिसगागे। माती हो, प्राम!! मागे! . .(15) पा दिन पाई। मुग मेरो गुपद पगई। ही मुमति मापालामा डिपम्न मर्ड। पर-पर-रगं राधा पाली. माण।