पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संक्या ४] सहगमन। देवकी मीम रवाब दिया, धि यसको हाप में पत्ति में लिया। --चिम दोनो साप से सा में रहे असं रमनार में । सुघ बिमा की माग में माती रही। किमा रन-मदाम में आती रही। .-पुर में तो भार ही कुछ प्यान है। पूर्ण हिम में देश का अभिमान है। मास त्या देशहित के लिये ! देश रोनोनितो क्या निये ! -मन अपसिंहरम के चार में । पा रहेको निम दार में। पारिप, महान, पर्वत, पाइर्या । साभी सूरमा भी दाइ । रात दिन अग्नि-पो हो रही। रात-रिम एवं मायो से मही। प्पोम, बन, पल, सपही है न मचा, पुर के पा से नहीं कोई गया। -एक दिन प्रसिद पापा मार कर, दब-सदित जपमा पपर, एकदाई पापो के पौष में , दिन पही सोती रूधिर की बीप में । "-म्यान से जयसिंह मे ग्सको साग, पार त्रि इसके द्वार परकर रखा। हो सिको मान वे मगे। मर चुकी थी वा मना माया मगे। ५-पापक्षों की पार सेवा में लगी, और हिर प्रिय प्यान में पति पपी, गोमियो से शादी भागीधी, चार पात पाप बर मागी पी। १-गोड में अपसिंहमपा नहीं। थेगो मोहे को पी। दर में घर पर चिन्ता वा गई- भिमतमा पेपरमा गई ! 10-मा गोमा सेनापति , बीर मारी बीएपी एम गति । वीर होकर भी हुई नको म्पपा। मादि से काने मगे ग्मरी पा- १५-बार प प्रापद सिपे इप समय पहले मुझे भी चाहिये। की गई इसकी प्रागित सूरमा, देवकी मे शीन भैगी प्रार्थना । 14-वाइयों में इस तरह मरती हुई, मन्त सोपा का निज करती हुई, रातु के अम्बाप से मारी गई। पामगा फल दुष्टता का निर्दयी। "नाम सुम जयसिस नग गया। शत्रु पर अब प्रधानको गया। सप र प्रिपरेर समापति-मिर मण म्पिा सबसे ग्मान यह शिर- 15-भाम मैं कर पुईगा रिपु-नगर तब पड़ेगी पनि इस मियर पर। पौर मोम मरूं रिपु-चाप में , हना मुझमे प्रिपा साप में। १५-दूसरे दिन म्पोम से ममता दुमा, पर.रे रागराम सा पडता हुमा, फेट सेइप दूर व मोहा, पुकामभ-पान मार गिर पड़ा। १.-मष्ट पुर मो यान में चार मिया मागं रपित गका पा पर मिपा । मिरिका मुद गोमाराम भार सप्तकी भाग मे पर जब रहा। १०-सनिमें में सौर इसमें से लिपा 1 पुरुषी,रा का गीपा दिया। पर दिया या मापा भाग मे। पा पुम मदीपचमुराग में। १५-पापरा प्रेमी पुगम पुमम जमे । और दोनो मापीर पसे। एक पूरा मे पेरे पदा, मर से पे दोनों पक्ष। . १५-म-पन नम- मार , मेमपम रंग मारे।