पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४३६

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__संध्या विषिष विषय । प्रकार पार चौक बनते हैं। उनके इर्द-गिर्द मेहरा स्थान भी है. मा तार के वृक्षों में छिपे हुए है। दूर चली गई है। इन मेहरा पर यात बढ़िया काम है। नीम-कालिन (IPL-Culin) पर्यत की निचली दूसरे सन के प्रागे जो धातरा है रस पर ऊँची शिखरमाला हटिगोचर होती है.जह से इस मन्दिर कुसी देकर दो गरे छोटे मन्दिर बनाये गये हैं। को बमाने के लिए भीमकाय शिलायें काट कर लाई उनके मुन्दर पार निराले प्राकार पाश में प्रति गई थी। पत्थर की मिन विशाल शिलामों से मन्दिर से आन पड़ते है। इसी पन में, जिसके पागे कोने पनाया गया था पार जिनकी बदौलत प्राज भी यह शिम्प से शामित है, आगे पीछे दालान बने हुए हैं, ऊँचा सिर किपे निर्भय सड़ा है, उमको माने पार मा बाहर की पौर बिकियो नारा खुलते हैं। अन्दर ऊपर चढ़ाने के लिए प्राचीन कारीगरों के पास कोन की पार द्वारों में से गुजर कर एक चाक पाता है, से यन्त्र थे, इसका विचार करने पर दर्शक की पुद्धि महो तीसरे सम की भीमकाय इमारत की दीयारे चकराने लगती है। प्रारम्भ दाती है। अम्त में हम पूर्यास स्टीमर-कम्पनो का दय से तीसरी दीयार की ऊँचाईकाई १३ गड है। धम्ययाद करते हैं, जिसकी रुपा दम अपने पूरे उसके ऊपर पहुँचने के लिए तीम जीने ई-दो मिरे के कीर्सि-स्तम्म-रूप इन यिशाल मन्दिरी का हाल पर पार पक पीय में । इस पीच पाले सोमे से बढ़ने पदमे को मिला। इस कम्पनी ने इनकी सर या यात्रा पर पम्मों से सग्नित एक सुन्दर दरवाजा है। सिरे कराने का उत्तम प्रकट कर रपगा। मारा अनु- केलीनो गारा कोनों के ऊँचे विमामों तक लोग पहुँच रोप है कि माग्ययान मारतपासी इन प्रयाय सफो ६। पृयी की कोई दूसरी प्राचीन इमारत दर्शन करें। शायद इतनी पिशाल तथा पूर्ण महाँ है । इसकी पालामा शर्मा 'मला तथा पूर्गासादय पर अपमा पात जमाये मिना महीं रहती। • तीसरी मंजिल में, चीपार के प्राकार में, चार विविध विषय । विशाल स्यान माप में यात्रियों के पठने की 1-"रहस्य" की गरिमा । जगह इसी में दयामय है, जिसका गगन-भेदी शिमगर पहले यन में सवार गज है। P RASगमा में "गृह" मामरा एक मामिक पेमी पिचिर इमारत की हर एक .ी का

पत्र Hिunt। मीन मदम पर्णन माया प्रसम्मय है। इसका महाप पनं दी Gघर में हिन्दी पनि - से माना जा माता पार दर्शक को पद पद पर पर ROM ममामामा भाभा AA 693 . पापी है। विम - उन माघीम लियो के प्रगत मपुण्य पार उनके पम्पों सम्माप ममागर - पसीम दि-यमय की मांसा करनी पड़ती है। मापो में पाम 1 मारमियर उसे उनकी भपन-निर्माग-कला के मान पर पाश्चय- नयमी बनी प्राधानमा में पाम, माना गरित दाना पड़ता है। पपिर। ____ मन्दिर की एन में पाहर की चहारदीपारी माम-दामा मानिr- रिपाई देती है। उसके भीतर भी पनस्पतिया पद रिमा माप मा . गा . माई।पहले पता पर पारगुरणे के पास. भूपदो, पिचाशों, मादमागमगर र