पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४६५

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भी इंडियन प्रेस, प्रयाग, के रंगीन चित्र नियकला, संगीतपिपा घोर कविता, उनमें रवा आयोग यमत ही नगार मिलेगा । जैसे अच्छे कार की कविता मन मोमा अच्छे गयपे का संगीत हरप को प्रफुल्लित कर मा यसरी विप्रकार का पनाया चिम्म भी सदय को विन-लिमित साधना जा में पड़े पड़े लोगों के चिों को भी सदा ध्रपने सामने रखना परम पर होता है। ऐसे उत्तम निनों के संग्रह से प्रपन पर को, अपनी पटा। सजाने की इदा किसे न होगी ? पदं चित्रों को यनानेवाले मार कम मिलते हैं, घोर अगर पक श्राप खोज पारने से मिला भी मोनि पनवाने में एक एक मिन पर हज़ारों की लागत पट जाती है। उन को धनवाना पोर उनसे अपने मयन फो सुसबित करने की प्रभा पूर्ण करना हर एक के लिए असंभव है। हमारे पास प्रशामित पाली सरस्वती मासिक पत्रिका में जैसे सुन्दर मनोहर निम निस्ता मो पालाने की ज़रत नहीं है। हमने उन्हीं चित्रों में से उपयोगी गुने हुए फल विष (पंधा कर रखने के नायक) यो प्रागार में बिम राय नयनमनोहर, शाट पाट वस वस रंगों में सफाई के साप एक पार हाथ में लेकर दोड़ने को जी न गाहता। नियों के नार, चोर परिषपनी लिया जाता है। शमिता कीजिए, गिम पोहे हार- शुक्रगदक-परिचय गुम-गमकसंगार (HrmiuR) (Armaan pat.... AMERIALSur'पर म RAATrn rarthartemahtantimmimri Amriti mmmmminar Artin mrseentert nirahtirreHitment Amiummarh Armatharth I murvakianti ki . . . . . _ ' . ___metrine-मे रिपन मेग, प्रयाग). ' '