पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४९०

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सम्यता का विकास।

एमा। पद पर पान नहीं पार सर्योपकार से पढ़ कर थे। भारतवर्ष इस शान्ति का पर चला था। पर्म महीं है। प्रदेत-धाम से सस्मिमाय की उत्पत्ति दूसरे देश या दूसरे धर्मों पर भाप्रमण करने की होती है, अर्थात् परमार्य का प्रचार होता है। इन बात भारतमाता को न सभी पी। किसी के मय हम पिपयो में मारत का अगगुन्य भाज भी पना टोग प्रध-विभ्यास म मढ़त थे। समप्रमाण-पूर्पक पस्तु-शान कराते थे। धन जितना अपने लिए भारत में तीन प्रकार के लोग हैं। पतरे तो रस्पते थे उससे कहीं अधिक परोपकार में लगाते थे। प्रशिक्षित है। कुछ धोरे से लोग, मुख्यतया पदेशिक पल का उपयोग दुर्यलों की रक्षा ही में समझते थे। मापा प्रादि के माता, विहान हैं। थोड़े संस्कृत के प्राज मी प्राचीन शिसा यालों की यही समझ है। पिटान है, मा मैंगरंजी प्रादि भाषायें या तो जानतं . प्रय तो भीतरी पार पादरी, अनेक यिन-दापापी दी मही, या पोड़ो मानते हैं । हिन्दी, फंगला प्रादि । ' के फेर में पड़ कर भारतीय धर्म का पर-यादर, में मी स्यवन्य प्रान-विज्ञान ही नहीं। इसलिए, सभी कहाँ, हास गया पर यद धर्म मना. उन साता या तो संस्स या अंगरेजी सानमे पालों के अनुयायी हैं। इनकी पृथप गणना नहीं की। तन है । इमान सपंया प्रायानाश कभी नाही हो जा सकती। धार्मिक एठ,पिचार की परतन्त्रता, अपने सफ्ता । धर्मों की उत्पत्ति देती है पार माश भी स्पार्थ के लिए ही दुनिया से सम्यन्ध रसना, पिना होता है। संमार में अनेक धर्म उत्पन्न हुए पार पैसा लिये किसी के फाम म भाना, इत्यादि मयीन " गये । दो तीन मार पर्व पदले कोई पम्म म सभ्यता के एक्षण। परस्पर स्यापार था।इस समय पम्म में किसी को थमा नहीं, पर रात दिन टेप-मोह, मामला मुकदमा, चोरी-शूस पम्मं का नाश नहीं है।"धर्म पय एता इन्ति पोति रक्षितः"-धर्म के निरस्कार में भया. प्रादि छोटे छोटे पचे से देकर बीमत्स युग तक ऐसी पी सभ्यता में होतं पाये ६। पतपय कहना

मक माश उपस्थित हुए हैं। धर्म-धर्म मिलाते हुए

पाहिप किस अयस्था में प्रान-विशान का सदुप- होग पफ इमरंका गला घोटते पाये।पर सनसी योग मदीदारगा। दृष्टि फिर धर्म की मार मारदी है। पिना धर्म के प्राचीन भारत में संसार में पान-यिमान राया पेपर मदा, शान्ति महौं। धर्म देशकाल परि- धर्म का प्रचार किया था। भारतीय धर्म के प्रचार निधर्म सनातन पार प्यापर।हाट में अपने ममास पार्षिक उत्मय फेममय प्यायाम से चीन पार सापान को सभ्यता पार शान्ति का शाम पा था। मयकी भलाई-सका मुर- देते हुए याद या मे मी मात्र पाल की शान्ति पो प्रान एक 'मर्यशम्द ही इस धर्म का मूलमन्त्र दूर करने पर उपाय किय-प्यापक पर्मदी बताया पा। पदिक समयो मपिया से बार भगवान् पर मापदी पारने अपने दंपणारी माकोदी रुख पार गौतम पुर पादे सकगे, समय समय पर, - प्यापक धर्म सदा । पाल, पापिल Fre:-

पादो मे ऐश्न मारो सपना। मी प्रमंती

मी धर्म का प्रमार रियाम धर्म में दमगेपो __ मगवान् मनु मे कहा- अपने धर्म में लाने की घंशन की जाती पी पार उपने सुपके लिए इसरो की हानि की घंश परम ___ निःशमा दनाय दोपनिदिद। जापतापा माता पास कारण पोरे धीरे धार्यिमा मण्यमांचा पमन्याम्॥ प्रसार मे पार्मिक पार मैतिक गई दूर होत जातं पही पम संचा, परमी भी पर्म में पाम समका न ममाय पान पर प्याल पारे-