पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/५३

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२२. . .. सरस्यसो. . . मान। पास कोई बड़ी आयदाद न थी' तथापि पापामाई करता है इसके पश्चात् दादामा पसफिन्सन मन को सुशिक्षित बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं में असिस्टेन्ट मास्टर नियुक्त किये गये। सन् १ की। उनकी माता स्यर्य शिक्षिता न थीं। पर पिया ईसघी में उसी कालेज में प्राप गणित तया विश! फै लामो से ये मले प्रकार परियस-यो । अपढ़ शारम के मुख्याध्यापक नियुक्त दुप, जो उनके रहने पर भी ये सीशिक्षा को टाभदायक समझती एफ बहुत बड़ा पद समझा जाता था। कार में पौ। दादाभाई के पढ़ाने दिवाने में उनकी माता या कि सिया अंगरेजों के उस पद परं सब तमी को एफ पहा सुभीता यह था कि उस समय शिक्षा हिन्दुस्तानी मुकर्रर न दुपा था। सराय-दावा मत दी जाती थी । पाम फल की तरह उस समय भाई के सीयन में यह पद पर गारय पार, अभिमान न तो यदुत फीस देनी पड़ती थी, न पापुत सी फा था। तब से भाप "दादामा प्रोफेसर के नाम किता दी माम लेनी पदसी धौं। माने पीने की से प्रत्मिय कामे लगे । यदुत समय सा शिक्षित अन चीजें भी घाटुन सस्ती थी । सारांश यह कि दादा- समुदाय उन्हें इसी उपाधि मे पुकारा किया, परन्तु । माई की शिक्षा के लिए समय हर तरह मनुफ़्ल था। ददामाई केपल अभ्यापकी ही पर सर, म.गे.. विद्याध्ययन । उमकै उत्साह की उमा यात पढ़ी दुईथी। उरई काम करने थे । यम्पा में पाप ने, कितनाही 'पिंगा कुछ दिन एक सरफारी पाठशाला में शिक्षा दोने पर, पक पुषी-पाठशामा मोली 1 उममें समय, पाने के बाद दादामाई पटफिन्स्टन इन्स्टीट्यूशन मिलने पर में स्वयं पराया करते थे।म पनि में, जो अब एमफिन्सटन फालेज के माम से प्रसिम रिक माप मे साहित्य पार येमानिक समा, पम्पा, दाखिल हुए। इस पाटशाला में दादामाई मे एसामिपशम, ईरानी फ, पारसी पायाम-एडा: अपनी सीम पुति पार परिश्रम का प्रण परिचय प्रमर्यिवाह समा, यिषोरिया तथा प्रलय मामक दिया। दादामाई में अनेक पारितोषिक पार छाप- प्रज्ञापन पर पाले । सन् १८५५ ईसवी में प्राप प्रतियो प्राप्त की। भाप सपशास में सय से प्रथम "रामसराफासार" प्रांम "सत्ययंका" नामक - रहा पर थे। पीसी की प्रायु में दादाभाई की ममाचार-पत्र निकाला। उसके गाग, सामागि, विधा पार योग्यता फी फीनि सम्पूर्म यम्पई याम्त धार्मिक पार शिक्षा-सम्पाधी मधारी का पाप में गई थी। माई हाईकोर्ट के घीफ जस्टिस प्रसार.पि.या। राम्सगुझातार को दो 'पर्प ना पाप - . उस समय मर पसकिन परीप, ओ शिक्षा समिति ने राम धान्यता से घटाया, पर ग्राम पर के पार. केमध्यक्ष भी थे। मापदादान की पारपता पर दादाभाई के समय लगातार में मत भेर. ऐसे ममप हुप हि परिस्टरी पढ़ाने के लिए है। उसकी मौनि प्रम पदमी दुरं है। . .. प्राधा स्पर्य दमे का भयार, दुर तया माधा सर समसेटझी जीसीभा से दिग्दपाना पाया। पहली विलायत-यात्रा ! , . . परमर जमोटसी सीजीमा एरस्टगा पेमा म गन् १८५९ सय में दादामा, कामा कमी होकि हम दादामा पिलापन जागर पुराने प्रतिनिधि र, पिगायत मिपा । पिसाग में

  • पमै पर 'स्पागास पर दामामा माग ५. पद, मिलनी प्रामायणे की:

पिसापर जाना कागपा यह सा भी हमा, भी मही दासी । म पीय में कमी कमी आपने पाकिस पर्प तर भारत की मी पंपाम स्वयंश साग मो की । पिसायन में ए. पर रावा.)