पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/५९८

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पा BB इंडियन, प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तके घालभोजप्रबन्ध। . है। इसे पढ़ सुन कर भासों से पांसुमो की धारा पादने लगती है और पापा-बदप भी मोम की पर २३-रामा माग फा विधाम किसी से छिपा रामूठ ही भाषा है। मूल्य ।। मही है। संस्थ्य मापा के "मामप्रपन्य" नामक न्य में यमा भोज के संस-विधानम-सम्बन्धी अनेक मपिट माप्त्यान सिसे हुए पड़े मनारवा और ग्रिसादायक है। उसी भोजप्रपन्ध का माररूप या आदर्शमहिला। "पाल-भोमप्रपन्य" पपकर वैयार हो गया। सभी यो दोश्री-शि की अपदक अनेक पुम्पर्फे पन हिन्दी प्रेमियों को यह पुस्तक अवश्य पड़नी पादिप। पुसी पर पदं पुस्तक बी-गण के लिए मादर्श मूस्य केवल पाठ पाने। स्वरूप है। मीपण्टिन नयनपन्द्र जो मुग्योपाध्याय ने पाल-कालिदास। पंगला भाषा में एक पुस्तक, 'प्रादर्शमहिला' लिखी ६. मी पुस्तक का यह हिन्दी-मरादा मने शातिराम की मात्र पार पापमान ६-नमें --सीता, २-साविधी, ५-दमयन्ती, ४-शैम्पा, ५-पिन्चा-इन पाप २४-दस पुष्धक मदाफपि फालिदास के सम प्रन्यो देवियों के जीवन-पटनापों का जीता भागवान से सनकी पुनी ई उतम कदापों का सेपद किया भनासे 3ग पर लिया गया ६ पुरवा टिमाई मान गया है। ऊपर रसोफ देकर मीपे उनका प्रय पोर के पाने तीन सौ पो में ममा र पदिया माया हिन्दी में किया गया है। कालिदाम की रित्र मी दिये गये ६ जिन में कर पितरंगीन है। कदाप पी मनमोल उनमें सामामिक, मविक चिन्द मी पहिया गांधी गई। इवनं परमी ममा- और प्राविक 'सत्यों' का पदी एपी के साप पर्पन पार के मुभीत के लिए मूल्य फेर सस किया गया। इस पुरुही किया पों को याद रुपया) करा देने से रे पतुर पनेंगे भार समय समय पर उन्हें काम देवी रहेंगी। मुत्र कयल पार पाने है। पोडशी। सीतापनयास । पंगता के सिर सापिका सपरिसद पणिव परपन्द्र विपासागर निरित प्रमाव हमार पाएको प्रमारणालिनी "सागर-बनरारा' मामा पुन का पर हिली. निती ग मायापिकामों का पद बरा अनुगाम पुमा में भायमपन्द्रमा गर्भ में प्रसिद्ध मी का पद रखी मीसामी परिलागी निम्नासिकमा पो २।कानिया हिन्दी में पास गपत और करदारग-0 भाषा में लिाग पाने पाप है। गूय ३६ मा पुग्दा मिलने का प्र-मनजर, इंडियन प्रेस.. ..।