पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

__संध्या ६ हिन्दू धीर मुसलमान । २३. अपने अपने धर्म के निधार से प्रतिनिधि सुनने से दिन्द मुसल्मामी का झगड़ा भी एकाएक हम क्या साम ! आइम कार्यो की करने योग्य है, जो इन स्टोगों के सम्मुख उपस्थित हो गया है। दस बीस 'सप पाती को सममाते है, उन्हीं को ये काम करने घर्ष हुए, कम से कम संपुरु-प्रारत में तो पानी धादिप-चाई पे हिन्दही याद मुसल्मान । दोनों ही जातियों में बहुत मेल या-दिनु पार मुसर. प्रय इस देश में घस गये है। किसी को कहीं पिसी मामी में पदुत प्रेम था। सर सैपद प्रहमपसा अन्य देश में जाम की जरूरत नहीं । यदि दुर्भिस को अलीगढ़ कालेज बनाने में दिनुपी से पात तो दोनो दुखी है। यदि शासन-पदति खराब है तो सहायता मिली थी । पहले इमानी जातियों में दामों की कट है। यदि हमारे ग्राम पीर नगर धन- शुत एकता पी। पत्र एकाएक धममस्प यों ही धान्य से पूर्ण हतो दाने हाँ मुली है। यदि मुशा- गया है। क्या प्रत्येक घीज़ में भेद का विचार टापन्न सन की पा से किसी के प्राण या धन-वैभप जाम हो गया है। इन प्रश्नों को हम करना कठिन है। का भय महीं है तो यह मुभीता दोनों के लिए उचित यही है जिप हमको एक ही स्थान पर पकसा है। देश में शान्ति हो तो धोनों मुखी है। रहना है, दमको एक दूसरे मुरा-दुःप में पनी यहाँ तो अपने अपने धर्म की पात माती दी महा। रण के पिता भी सम्मिरित देना, हम पयों फिर दम क्यों इस माया जाल में फंस गये हैं। हम प्रापस में मेष-भाय रघरों ! परों महम इसका उतर पाना कठिन क्या प्रसम्भप सा है। भेदफ विचारों को दूर करके एपसा की रख से अपने देश के इतिहास की विशेषता दिखलाते बद हो जायें। एए पयिपर रवीन्द्रनाय ठाकुर में क्या ही मुगर इसकी मिमिक लिए उचित है कि दोनो भाप प्रपट रिये - सासियों के प्रगुपे की पागे पदमा पाहिए । "मनुष्य परतिहाम मिप भिन्न देशो में भिन दोनों को पद यात माननी पाहिए कि दोनो भिन्न प्रकार से विकसित दुपा। भारत का इतिहास के माम्य एफ दी मन में पहुए । एक पृथा। परम्नु प्रारम्भ ही मे उसमें दम देयते जाति दूसरे को जा कर महाँ द मपी । ६किपर इतिहास रिमी एक विशेष सभ्यता या इस पातका माम मेने से भागे पैर रखना सहल विदोष जाति का मदीं है। दारिद प्रान्त की सभ्यता दिनुपी में गुपारन मात । इसमें कमी पार मार्य सम्पता वानी हमारे पम्तर्गत ६। को प्रमाता कि ये हमसे पण करते हैं। मारा देश जितना दिम्युगों का है उतना दी मुसद- गहना पड़ेगा। न्य जानि के भाइयों में भी पद मामा का भी हितना पद मुसम्मानी का स्तना प्रार्थना कि इस सम्पग्ध में पे हिमुपो धमा ही दिनुपी पर भी है । पायुर्ण भिप भिन्न कर सकते ६, क्योकि रिमी फोम एने का कारण शानियों के एक दोन कारय पाकात की तरह गया महौं । हिन्नुम में पद प्रथा ही गरी पाही भारत के इतिहास की भी परिनाग नदी बताई पि. दे पाएग में भी एपाएतका पिवार करते जा सश्वीरितनी ही जातियों का संपर्प क्यों न कभी कमी मी माताला मी मी पुष. दो, दमारा कोई रियर कप महापभी का रस पुत्रियामागोमततामा पद पर परपएता पी मेप से अपनादत पाया में शारीरिष साप्ता का परमगे भाग रिपर पार मदिगत स्याप महा देव पाना।". में पैमनस्य पैदा तापाई म्प जामिदिमुरी Ncentrwar, RTO र क्षमा कर पाई पार, पर प्रब न