पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६१४

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सम्या ६ ] साकेत। .३६७ भोप्या भवनि की अमरावती, इम परम विदित बीर-प्रप्ती । वफत विशाखमपाम, . और मम्पब बन बने माराम ॥ एक विविध मुमो-से सिमे- पौरमन रहते परस्पर मिथे। सत्य, शिषित, गिट, गोगी समी, माम भोगी, मान्तरिक योगी समी॥ प्याधि को मापा नहीं वन के लिए, भाधि की पता नहीं मन लिए। पोर की चिन्ता नहीं पन के लिए। सर्व मुसमाप्त जीवन लिए। प्रसग रखती सदा ही ईतिया, माती शुम्प में ही मीतियां । मोतियो रे पावती रीति, पूर्वराजा-मना की प्रीतिया। पुत्र-सी चार फर पापे पती, म्प को और इन पाना नहीं। क्स, यही ममिवार पूरा एक दो- सीम ही मीराम का भमिपेक हो । कौन हारे, स्पासाराम की ! दोपुरी पारियां सब काम की । बीच में बस एक ही मप सत, भषिक क्या, भमिपेकक प्रमाउtn सूर्य का भय मी नहीं माना मा , किन्तु समय रात का ब्यमा एमा। स्पोंकि ग्मा पीने पर गये, रम्य स्मामापीरे पड़ गये ॥ एक राम्प न हो, बहुत से माँ, राष्ट्रका चिर गावात बहुत बारे में, मेरा का मिय! सूर्य का भाला मुमा स्वर मिरा ॥ मीद भी पैर पने मगे, देखोरोचन-मुख मैमने पगे। पेर-भूषा सार सपा भा गई, मुम्पमा पर मुसमार पाई। परियों की बाणाहर होम्डी, येत्या की अधिक भार होती। सामोरा येथे भुख ठे, प्राणियों के नेत्र जप सुबठे। दी की पोति निमम हो निरी- गई भव एक धेरे में पिरो। किम्त दिनम मा हा, स्या सोच है। रमित ही गुम्मन-मिस सोच है। रात रेसम का माहै पाव-मा , पूर्व में है समस्-गोबिव-पात सा। कट गई मणि-सचित निशि की शाम भी, पड़े दो-चार मणि इस बार भी । हिमपों में मिसे शीतय किया , और सीरम में मिसे नव ब विधा। प्रेम से पागल पवन बहने सपा, सुमन रम सर्प में मनाने मगा ॥ BR र प्रमातियां होने की भबसता ग्मानिया बोने बगी। न भैरव राग पाता है इसे- मुति-पये से प्राण पीते मिसे। दोसते ये सब कामे प्रभी, असलियत पर मा गमे ये सभी । सूर्य देव में प्रदप इस शुत गपे , बोकरदार मानो त गमे । हर गया माची रिण का द्वार, ___मान-सम्मान में गप्पा मार है। पैन गाने, पूर्व का पहप, बा मिपतियारमा किंवा रोप। प्रत्य-पर पहने इप, प्रहाद में- अन परयया सीमासार में ! प्रर मूर्विमती ग्पा ही तो नहीं। कान्ति की कि गोमा कर रही । पण समीप सुवर्य की प्रतिमा मा- भार विपिनाम से ली गई। कमसतिगामी मय- सीमा , । प्रम्य सोशिपीकीमा ।।