पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६१६

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साकेत। है भयोध्या प्रथमि की पम्मावती, इमरणय विदित मीस्-यपी । सक्त विद्याधरम पाम है, और नम्वन बन क्मे पाराम ॥ एमबिविप सुमनों से सिमे- पारसम रहते परस्पर मिले। सम, शिपित, शिष्ट, गोगी समी, पास मोगी, भान्तरिक बेगी समी॥ म्माधि को बापा मही वनखिए, पाधि की शामहीं मन के लिए। पार की चिन्ता नहीं धमबिए । समुख प्राप्त बीवन के लिए। ममग पती सवा ईतियाँ, ____मरकती गुम्म में ही मीतियाँ। मीतियों के साथ राती रीतियां, पूर्व रामा-प्रया की प्रीतिया। पुर-मी चार पर पापे कहीं, मूपको पब और क्य पाना नहीं। पस, पही अभिशाप पूरा एक दो- पीप्रती श्रीराम का पमिपेको। श्रीन कारेचा सागम की! दो पारि सब काम की। बीच में बस एक ही अब रात , पपिक क्या, प्रमिक प्रमात ॥ सूर्म का पन मी नहीं भाला हुमा, किनु सम रात कामा एमा। क्योकि रसके पापीछे पागमे । रम्प रस्मामरक्षी पड़ गमे ॥ एक राम्म न हो, गुव से मा, का पन बिबर मावा यहाँ। पात तारे, अंधेरा कामिय! सूर्य का पाना मुमा सबब मिय। नींद मी पैर पने बगे, देशपा, पोम-समुप मैपने बगे। मेष-भूषा सान सपा भा गई, मुम्पमा पर मुसकरारा गई। परियो की पाहाहाहठी , चेतना की भषिक भारट हो भने। सम के मोबसे, मारियों के नेत्र जप समठे. पीप-सकी ज्योति निष्प्रमो मिरी- राई अब एक पेरे में घिरी। कि दिनकर माता सा सोच है। रचित ही गुरुमम-निकर सोच है। रातम का मापात-सा , पूर्व में है ममर-शक्ति -पात सा। प्रमई मधि-विध मिशि की शाम भी, पोबो-चार मणि इस बात भी हिमायोमेलिसे शी किमा, और सारम मे मिसे मसल दिया। प्रेम से पागल पवन बसने समा, मुमन-रन साल में मरने भगा ॥ और और प्रभातिया होने पगी. भबसवा को ग्यामिया पोमे बगी। प्रेम भाग रागमता से- मुति-पुय से प्राय पीते बिसे! दमते मेमोकाचे प्रभी, अससिक्त पर भा गपे है सभी। सूर्य के रस में प्रश्नम शुत गमे, बोर पसार मान्य त गमे । सुख या प्राची दिशा कारt, गगव-सम्र में ग्य क्याम्पार! रैन बाने, पूर्व का मामे, या निपति का रागवा रोष प्रव-पार पहने हुए, प्रभार में- बिना बाबा पाही प्रासार में! प्रल मूविमती ग्पा ही तो नहीं। कान्तिपी विनवा रहीं। पायीच मुषर्य की प्रतिमा बई- भाप विपिसाब में की गई। कमसतिग मी -सी प्रेमवा, । पबीम्स रेसिपी की या