पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६२२

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साफेट। प्रर्मियामममिक उप हो रही, उनका सामिम मे कि-'यही सही । तुम रहो मेरी हरप-देवी सदा, में हमारा प्रथम सेवी सता" फिरा -"परवान या देगी मुझे। प्रेम का सम्मान क्या दोगी मुझे।" सम्मिमा बोसो कि-"पा क्या धर्म है। काममा को मोमबम है।" किन्तु पक्ष्मय मे महीं माना इसे, और ये पोले-"मुनाती किसी काममा मेरी समम्मे वासना, सपना ही होगी भमन्योपासना विसावा का मौन ही क्यों सामना कि पोरगान तुमसे कामना । अब कहो, मदाम दोगी पानहीं! प्रेम का सम्मान दोगी पानहीं" मिसा मेस मास काम में- ___ "क्यों नाही, रंगी नमी को पान में !" "पर विसे रोगी" हा सौमित्र में, (राबवेवानुन पवित्र-परित्र मे) मर्मिया मोदी जीपबोधने, बीच में एक मोबगा रस बने। तबका ग्सने कि-"क्या चाहता" .२ का गठवतों का पता : "कपकपुर की सर्व-सीप-विहारिका- चाहता हूँ एक मुली सारिका!" बनिन शिका सफर समय से, अम्मेिवारे मोर भी कार से। ममित पम्-माष दिपा कर महा। ___ रस मिया मे इस तर प्रिय से कहा- "और भी तुमने किया कमी ! मा किवाते ही पापे ममी" "बस पुर्ण पाम प्रमी सीमा पाी," बात यह सौमित्र में सस्मित की। "देवानी"म्मिशाने मी का, . विविध विपित्र भी बिनोदाता हार माते पति कमी परनी भी, फितु वेहोते अधिक इपित तमो। प्रेमियों का प्रेम गीताती है, पार में मी पो परस्पर बीत . ममिपेकनर्शन के लिए- चित्त में प्रयन्त कम किये। दम्पती येरेर से सोये तमा- सीप ठने की परस्पर भी कमा: ममिक्षा ही किम्त पहले यी जगी, इस लिए मारोण से करने बगी- . "माम मेरा विजयस्पोकि । पारो, भारही प्रमिपं " प्रेम-पूर्व सबस ससित भाव से-- मुस-सहित सौमित्र बोने चाप से- "क्यानो, भिटो रिपो की, ___ मानता हूँ, भारी भमिपेक॥ मात्र ही प्रमिपेश होगा पाये का, और मापन देस के कार्यका। ग समय होगे हमारे पास ही, मिव होगे मुक्त मारे मास " सर्मिया योनी कि-" ना कहो, संतमत नरटि-फसमायो। तो तुम्हें अभिषेक रिजवामी , बरसता सामने बाई भी।' चिन क्या तुमने बनाया है!महा!" पन मा मौमित्रमे सापामा। "तो से बापो, विसामोमा ! सनहीं, मैं पात हा गा पा " मनेिवा में मूर्ति बम र प्रेम की, . स म मशिनारित की देम की। भाप प्रियतम को मिटा रस पर दिया, . और पाकर चिपट सम्मुश किया। चित्र मी या चित्र और बिच्चि मी, बगपे विप्रल्प से सीमित्र मी । . वम भाव-प्रयता, पता, पाप सुनने को-