पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६२६

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पल्या ६] । महरिनिर्वेद मारक। कता था । जब माझण उसे लेकर अपने घर पाया उनकी बीवनी के विषय में एक संक्षिप्त टिप्पणी । उसकी स्त्री मे फल की देख पार उसके गुण निर्णयसागर प्रेस की ओर से दी गई है। इसी प्रेस जान कर अपने पति से कहा- ने इस माटक का प्रकाशन किया है। टिप्पणी में "तुम दरिणी हो, अमर रोकर स्पा कोन सा सदा लिखा है-हरिहरोपाध्याय का जन्म मिथिला-प्रान्त बी पने समा ही तुएँ ममीट : पेसा बरवाल क्यों में हुमा, पर कप दुधा इसका कुछ भी निश्चय महीं। पा माया होता कि न पा र कुन मांगते, जिससे इस माटफ की एक प्रति मैथिली-लिपि में लिखित मा सीमन तो मुस-पूर्वक प्रीतम । नामो, इस फल प्रन्य से लिखा कर पणित चेतनाथ शर्मा मैथिल ा महरि को हो । वा तुपात व देगा" ने हमारे पास भेजी। उसी के प्राधार पर यह निदान प्रामण देषता ने ऐसा ही किया पार पुस्तक मुशित की गई है। इन्हीं हरिहरोपाध्याय का जा ने पास सा धन देकर उसे यिदा किया। वमाया मा एक समापित प्रम्य भी मिथिला में पर्त- राजा अपनी रानी को अपने प्राय से भी अधिक मान है। हरिहरोपाध्याय के विषय में इससे अधिक र करता था। उसने सोचा कि रानी यदि फल पार कुछ भी पास महीं। स्मा ले तो यह अमर हो जाय । प्रेम से अन्य हामे कषि ने प्रम्य का प्रारम्भ इस प्रकार किया है- कारण राजा में फस अपनी पनी को ही दिया सब राजा महरि पास दिन पीछे बाहर से र उसका गुर भी उसे पवाया। कहते है कि अपने पर पाये तष उमकी रामो मानुमती सम्मम मी का कई गुप्त प्रेमी या। रानी ने यह सोचा कि के साथ उनसे मिलने को उठी। उसके मुख की रे अमर हामे से मेरे प्रेमी का अमर होना अष्टा उषि को मानसिक चिन्ता से मलिन देख राजा मे इससे उसने फल उसे दे दिया । उसका प्रेमी अपने मम में इसका कारण यो समझा- क येइया पर मुग्ध था। उसने यह फल उसे दिया। चिरविस्पतमपुरसितमुमितपत पायमस्वार । इ यही पुदिमती थी। उसने विचार किया कि मैं निगवति मिरवपिचिन्तासन्तासिमान्तर सम्मा लटा अमर होकर क्या करूँगी । अमर होकर उसने रानी से पूण-प्रिये ! तुम उदास क्यों पिछ पाप की गठरी दी सिर पर बांधूप । पता हो! साथ ही अपनी गाड़ी प्रीति के सूचक कई दि राजा को मैं यह फल मेंट करूं तो मुझे बहुत एक चाटु-याफ्प भी उससे कहे, जिनका उत्तर रानी न मिले । इस प्रकार यह फल फिर राजा ही मेरस प्रकार दिया- पास हॉट माया । पेक्ष्या से पूछने पर राजा की भरमाचा सिपं स एवम । पम्पपा का पतिम का गहाळ मालूम दो गया । इसी से उसे संसार से निरशो सो मविप्र मण्यप गमेसि । यसमामवि सम्वन्तो कदम विरकि हो गई । एकाम्त मै जाकर उसने मपि असावं मम जीवियं र विमोपस्स"। स फल को स्ययं ही साया पार राज-पाट छोड़ (संस्कृत) भार्यपुत्र, मनीगत्ववत् । प्रसपा कम- र से निकल गया। मेतामत कार्य मिरमुको मूत्वाम्यप्रगमः । म त मामा- ___ महरि-नियेद माटक में राजा महरि की स्थापना मतणमप्पसहन मम मीवित तब नियोगस्प । परति की कथा पार ही प्रकार से पर्णन की गई यह कह कर वह रोने लगी। । पाठकों के मिस-विनोदार्थ संक्षेप से यह यहाँ राजा में कहा-प्रिये, मैं एक ज्याविपी के र दी आती है- क्ताये हुए दुपयशान्तर के शारपर्य अनुष्ठान कर. इस नाटक के रचयिता हरिहरोपाध्याय है। थाने के लिए गाजी के तट पर गया था । वहाँ