पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संख्या ६] महरिनिषेद नाटक। पसा को रोकने में पा समर्थ न हो सकी। राजा सा एप पर न पनपणे देवार पहिमिगता। जब बाहर निकला तब रोती हुई रानी भी उसके गेहार मनहरोता विगिताबा नीवोसपा .. पीछे पीछे दरपाले तक गई और उसे उस समय फैला दयविदारक विलाप है। तक देखती रही जम तक यह प्रमों की पोटम यह कर फर रामा फिर मसित हो. गया पौर हो गया। बात देर बाद होश में पाया । यह साम कर कि राजा मे मृगया स्थळ से अपने एक विश्वासपात्र रानी का शप चिता में जमाने के लिए श्मशाम- मोफर के द्वारा अपने मरमे का मलीक समाचार भूमि को पा रहा है राजा की घरा चोक हुमा । एमी के काम तक पहुंचाने का प्रपञ्च रचा ।सने वह बोला- सोचा कि देखें मेरे मरने का समाचार सुन कर इन्वन्त ! मैवम् । यह क्या करती है । पजा सामे के कुछ ही अस्पाः विग्यशिरीपरमशिखा सामामिति, पप्टो पाद एक मनुप्य यह भय समाचार राजा प्रोपमम्ममापिता बता पिता कासाचिता मेचिता। । के महलों में ले पाया कि घायल सिंह के द्वारा मोम्पी पिरिता मवामिरिता मलामबहापसा- । राखा मारा गया। इस पुरसद समाचार को सुमते हापापयानो बरदनुः स्नोबसे दोप्पति । । ही पनी मानुमती, जैसा कि उसने राजा से कहा राजा महरि पनी के विरह से इतना शोका- । या, अपमे पापको म समाल सकी। ससका दय पुस पीर अधीर हो गया कि श्मशान में जाकर वह

मिदीया गया और पह विसामय में अपने प्रायों पागल की तरह उसके शष से लिपट गया और

। की प्राति देकर इस प्रसार संसार से कूच कर ग्सका दाह न करने के लिए उसने भाषा दी। । गई । उसकी प्रशंसा में उसकी दासियों ने उसके मम्बियो, परिमो पार वाम्पो ने पास कल उसे समझाया, पर उसने म मामा । कारख यह था मप्याकं प्रिफमर नुवा पतापास्ता काल्यो । कि प्रख्य की परीक्षा करके उसने अपने पापही । पशुपस्मिय प्ररूपस्य प्रवाशिम रानी की बोया था। इससे उसे असीम परवाचाप रानी का शप नव श्मशान को जा रहा या वष और दुग्न हुमा । यहाँ तक कि जप अप को मोमो में राजा भी प्राभेट से लेन्टा। उसका पाम माफर- पसाद चिता पर रख दिया तब राजा मी स्वयं चिता । को.गा, और भी कई एक अपशकुम हुए इसने में पर रुदने को दौड़ा । तप उसके ममाम मन्त्री देव- माफुल होकर वोडता एमा एक प्यादा उसके पास सिसक ने बड़ी कठिनता से उसे रोका। माया पार बोला- , सब राजा का शोक कुछ कम न दुपा तव एक "महाराम महारामी"- सेषक ने मन्त्री से कहा- । राजा मे अधीर राफर पूज-"फर तो, महा "महाराम, एक योगिराज यहाँ कुछ दूर पर । रानी को क्या हुमा"! विद्यमान है। फदाचित् उनके शानोपदेश से राजा - उसने उत्तर दिया-"महाराज का सिंह के को कुछ पाश्यासम मिले। । प्राघात से मारा जामा सुनते ही महारानी का मार मन्त्री सुरम्त उनके पास गया । इपर राजा फिर । पखेरूद गया। सघ स्वर से पिसाप फरमे लगा। इतने ही में यागि . यह प्रनिए समाचार सुनते ही राजा को मूर्ख राज के मुख से पे पचन सुन पटे- मार्गा। कुछ देर बाद चेत होने पर पर बोला- . "परी मेरी हरिया। कहाँ गई। हा निर्दयी - -- - - -- --