पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६३०

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क्या ३] महरिमियद माटफ। योगीश्वर-पजन् , सुमको प्रति शोकाकुल परन्तु राजा कुछ न पोला । वह मौन ही पारय देव दयायश मैंने यह प्रपम्प रचा था। किये रहा । 'मन्त्री ने अब 'उससे उत्तर के लिए राजा ताई गया,पे और कोई नहीं, महात्मा प्राग्रह किया तव पहईस फर पाळा- . गोरसमाथजी दी है। अतएप षह तुरन्त उमके पैरों "अरे, पापा देने का अवसर निकम पर गिर पड़ा और विमीय दौफर पोळा-. गया। क्योंकि- . "महात्मन् , म माप मेरे गुरु है। मुझे हामा- परमावासीसम्मम मम - पदेश कीजिए, जिससे फिर ऐसे प्रशानाम्पकार में मन्त्री राजा चामेवपतरका मैं म पर"। भीगु जम्मानसमिसिरे मोरक्षनाथ ने कहा- स म्यामोदो मे समूचो दिनमा ॥ महारपासच्यापि संपतिरभूदेपा पिरोपम्पमू- प्रर्थात्-जिस यामाह के कारण संसार में मेरे रस्पारचेति निवृत्तिमिसि तीवन्मूक्षमम्मूलप। तेरे पादि का ममत्य या, श्रीगुरुदेष के उपदेश से नावसिमसा न दिशा ममम सबिम्ममं , अब वह समूळ मर हो गया है। वर्ष तथगि विचिन्तय परानन्द पई प्रास्यसि ॥ तब देषतिळफ ने गोरक्षनाथ की पोर देन इस उपदेश को सुन कर रामा मे विचार किया कर कहा- कि यहीं कहीं एकान्त में भ्याममा होकर प्रम-विचार- "महात्मन् , यह तो मापने मानो यिन्के परायण हो । निदाम कुछ समय तक स्यामाषस्थित थिप को दूर करने के लिए सर्प से हमारे महाराज होने पर राजा को पड़ी शान्ति प्राप्त हुई। सब पानि को रसया दिया"। राम के समीप पाकर यह पोला- पागिराममन्त्री, मुझे क्या उलहना देवा है। "विनामसुम का मुझे कुछ कुछ अलौकिक तू ही रामा के घेराम्य को हटा। मैं भी तेरी पात धामन्द प्राप्त हो रहा" का अनुमोदन करूँगा। .योगिराज मे उत्तर दिया- निदान राजा. और देषतिळक में ममा सम्मा- "अम्पास से पूर्यानन्द की प्राप्ति होगी। समय पाहा संपाद दुमा । मन्त्री ने राम्प, सज़ामा पौर माने दो, मैं प्यार हठयोग का उपदेश करूँगा"। राम्य-सम्मी प्रादि की प्रशंसा करके रामा का चित्त राजा-(प्रसन्न होकर ) “महाराज, यह तो उनकी पार पाहप करमा घाहा । पर राजा की भापकी पड़ी ही रुपा दोगी"। वीन पिरकि का इससे कुछ भी प्रामात म पहुंचा। इतना कह कर पह गोरक्षनाथ के पैरों पर प्रम्त में हार मान कर उसने यायिय का ही गिर पड़ा। भाभय लिया तष गोरममायनी में फहा-- देषतिकक मन्त्री यह सारा चरित्र दूर से देख "राजन्, पामो, तुम्हारी शिस माण-पलमा के रहा था । उसने समझा कि योगिराज के समझाने वियोग से मुम्हें यह उस्कट पैराग्य पैदा हमारे बुझाने से राजा का शोक दूर हो गया है और यह उसे अपने योग-पल से में जिला और तुम्हारा सांसारिक कार्यों में फिर प्रवृत्त होगा। प्रतएव समीप धैराग्य जाता है"। ... . . जाकर पहला- पाशिराम मे पह पात कर दियाई । पुनधित • "महाराम, रामी के शव का प्रमिसंस्कार रानी भानुमती एकान्त में राजा मतपरि के सामने करने के लिए पाहादीजिए। '. . पानी और पाली-