पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६३२

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संख्या १] सस्या करूं"रामा ने कहा-"प्रमा, जो उपकार मापने मेरी प्रतहटि को खोल कर भी कर दिया। उससे पढ़ कर और क्या हो सकता है"! अन्त में गोरक्षनाय के इस पाशीर्वाद के साथ मग्य समाप्त होता है । सापो सिमानु काममा चिरं राम मनालना- लक्ष्मीरखतपचपातमधुरा भूपादुवाराममाम् ।। परोधापरमागतादप सुइसापोत्सरपिरी- रस्मिन् हरिरी परीक्षितगुणा याच गीगौरवम् । लीशानन्द जोशी (रायसाहब) . सत्य । सत्म-स्नेही बमे सत्य का दम भरते थे। प्राय बाय पा रहेन पपरवा करते थे। किनु म सपक्ष माग भसापक पद परते । बीते पे दम तमी सय पर बर मरते थे। ग में ममता बाम, पम, सम की दम भरते थे। एक समदी के लिए क्या क्या हति करते थे। अवम्बित या एक सय पर ज्ञान हमारा, विचवित पह भर पाम सम से प्यान मारा। और किसी भी तरह ही पात्राए मारा, गौवन, धन, सर्पस सत्य था मार मारा ॥ निराहस थे म्पमार सब हि प सते मये। ध्रुप टब माता, किन्तु म नि प्रप से रखते गये। कमी पिकाते मेन सय पर मा महते पे बैंकमा कार बसी से दम पाते थे। पर न ममापि प्रसार मार्ग में पर पड़तेरा ऐत में तमी मुक्य मरे गाते थे। सम्पनिष्ठता में तमी भारत का सम्मान पा। प्रमापरी तक में एमा गुरु-गौरव का गान पाए र मप से और सम्म पूरए भाण्डे सेना और * FR ऐसा रंगले में। एम्म, कपर,बस से न किसी को इम मते घे, " अमर" पेपम बनी से पवन नाती बी कमी सर बाना स्वीपर पा। साप-प्रत प्रतिपावते म मामा सीमार बा॥ र से मी नही सत्पको दम तम् । परम-पुण्य-मप बान इसी को हम मन्ते थे। चौ र विताम सपता के सस्ते दे र हार पर सुपा-यमामे हब बम पे । राहत !ी हम सब ए सुपर सबसे रहे। मिष्पा प्रपन्च से हो गये दूर र मण्हर । अगर को पार किये सत्व-मुग की बातें पी बता दिन ही प्रेम और ही करावी। मोथे भाचे पोगन समी में पानी रखी मप ये सम्म म येथे मात पनि।