पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६३६

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सम्या ६] • प्राधुनिक हिन्दी कविता ।

  • चा स्पों व हो, पर यह बात स्पष्ट दिखाई देती है कि बिए पारे समाज की हानि होती है, जिसे पापा सम्पादक

इसकी उत्पत्ति परिस्थिति की किसी विग्रेप और सामाविकका मुम्म पाप्य है। पटना से नहीं पहने का सारांश यही है कि हिन्दी में हिन्दी में समायोकी सम्या कम होने से भी मामा सामयिक के बदमे बहुपा असामयिक मन्दी की बढ़ती हो रही है। गो रोग विदेगी मापा कविता यात आती है। यदि कषि मोग किसी विषय पर कविता की पुस्तकों के गुप-चोप निकालने की पोम्पसा रमतेने जिसने के पूर्व से पार यह सोच लिया करें किहम पर अपनी वासीनता और प्रदूरदर्शिता कारण अपनी विधा कविता मिचकर कोन सा हित-सामन फस्ने पावो का पाम अपनी मातृ-मापाको नहीं पहुंचा सकते। कई हिन्दी में बहुत सी सुब्यम्दियों के पर्णन और प्रवण का पोग इस विषय में पेसे ग्यासीन है कि समाजोचना अवसर श ापा । नमा अपनी प्रतिमा की दीयता समय Fई वोग पेसे जय बोगों का पह मत है कि हिन्दी की बात सौ तीम समानत मे किसी भी कविको मुघसीदास पार तसदीकी भापही योगी। इसमें सन्दोह नहीं कि किसी भी देशको सर वायर स्वार की पाधि देने में तम्यादी करने पापा को सही पोखी से बी समापता मिली तैयार रहते। हिम्मी में इतनी धिमी मीकि जिसमे सोगों को याममान हो गया किसी बोषी र कोई अपने में कवि पीर मेखक बनने का स्मता तुम्मनो के लिए भार प्रममापा माषपूर्ण कविता लिए अधिकारी समझता है और मनमानी रचना करके भाषाका सपएको। नहीका सम्से कि परिवही बोली का प्रचार गला घोरता है। परमाता के समप विष प्रकार रिसांचे मरता तो पे तुरुपद गाम येते पा नहीं, पर मखमाश का पाईस मी रामा बनने की स्पर्धा करतारासी प्रकार पास में माषा की हिसता अया और किसी कारण से बहमा हिन्दी की पत्तमान अपस्या में एक कम्पाविटर मी मेला पही योग कविता करते थे जो मोठाभी का मनोरनसिसी और कवि कारखाने का दावा करता है। चिट पति- स में कर सकते थे। मेरा का प्रमाय जिवना इस समय सूचक ममप है, पर इस माति को चित मार्ग और मिक्स गतना परमबा, पापि भायम पाये की अपेक्षा अधिक सीमा में रखने के लिए एक ऐसे माषासकको भारय- विषयों पर कविता बनती है। मार्य में तुमची मसा पता है जिसके बिना हिन्दी में पत्ता न दिख सके। स्याही भावपूर्ण कविता किसी विरोप मापा के कारण नहीं देती, प्रमादो पदि कोई नागरीमच्चरिती सभा एक "समा- क्योंकि प्रपत्य-रचना में भाव मुल्य और मापा गया। बोम' पत्र निमखने का प्रबन्ध पर हिन्दी की परा- वन्दी को उत्तेजना वे भपरापी गई एक सम्पा- ममता में शान्ति स्थापित करे। एक मिन्हें अपने समाचारपत्र के लिए सामग्री के प्रभाव भच हम हम गुणों का सपेश करते मोसम में किसी भी मेलको स्थान देने की पावरफ्कता होती है। कवि में प्रापरवा और जिनकी सहायता से यह मच्ची बहुत सी तुवन्दियों का प्रचार समापसों हीडा व सविता सिखने में समर्थ हो सम्ये गुख पे- इसलिए पदि इनके सम्पादक मही कविता का तिरस्कमा (1) देश, कार पार पानझान । कररिया में वो गुत से मवयुका अपनी बुद्धि का पपेण (२) निफ्प की मबीनता । .. किसी दूसरे प्रकार से करने वगे। अम्मा तो मुषा प्रेता (१) मयकारों की मबीवता । वापिदि किसी कविता को कोई पक सम्पादक नहीं (७) प्प का ज्ञान । भापता सो दूसरा मन से पाप देता है। कई सविता (१) सहानुभूति पीर सावता । पिरोपकारयो से समाचारपत्रों में बापी सती है। किसी (९) समता का पावर। चपये से प्रारको की निती , किसी के अपने से मो इम सा गुलों के समय में हम पी प्रसिद्ध कवि बार की सहायता मिलती है और किसी के पपने से मक्युमक मैपिप्तीमय गुप्त का एक पप रपट करते है और सकी सेवा में कामसाहता है। इस एप में एक के बाम अब सुन्दरता दिन इस देश को समारते E-- .