पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६४२

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संख्या ६] .. पम्प परमेश्वर। . ३८५. - - इनमें से दो कण भी एक से नहीं। सब की पनाषट पञ्च परमेश्वर। मित मित्र है।ये कण फूले की तरह, पहियों की वरह, तथा मित्र मिम प्रकार के पटमों की तरह PRAATम्मम शेख पौर पळगू चौधरी में होते हैं । किन्तु विचित्रता यह है कि समी में केवल गादी मित्रता थी। साझे में पेप्ती छः कोने होते हैं। म कम, न नियादह । एक पीर मी होती थी। कुछ लेन-देन में मी विविध पात यह है कि इन कण के तमाम कोने एक 'सामा पा । एक को दूसरे पर ही सतह पर होते है। इससे ये कप कागन की तरह अटल पिण्यास था। जुम्मम अध बड़े महीन होते हैं। इस संप्या में कुछ फों के हज करमे गये थे तब अपमा घर मळम् को सैपि चित्र दिये जाते हैं, जिनको देखने से पता लग जायगा गये थे। मीर, अलगू जब कमी बाहर बाते सुम्मन कि पे पर किसने सुन्दर और सुहावने होते हैं। पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें म बान-पाम कुछ कम विको पार कुछ सरपुरे होते हैं। का व्यवहार था, म पर्म का मासा, केवल विचार यिकने कण कम सर्दी में बनते हैं पौर मुरपुरे प्रषिक मिळते थे और मित्रता का यही मलमन्त्र है। सर्दी में । सो के कपा में जब किसी कण के बीच का रस मित्रता का सम्म उसी समय हुमा जब माग कड़ा हो माता है और उसके कोने कुछ अधिक दोनों मित्र वालफ ही ये पार जुम्मन के पूज्य पिता, फासले पर बनते हैं तब उसकी साकल बड़ी ही जुमेराती, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। अलगू ने सुहायमी बन जाती है। गुरुजी की बहुत सेषा की-सूब रिफापियाँ माँजी, हिम केदन कयों की बाहरी बनावट के प्रति स्व प्याळे धोये । उमका हुका पक क्षण के लिए भी रिक, इनकी भीसरी बनावट भी बड़ी विचित्र प्रारं विधाम न सेने पाता था । क्योंकि प्रत्येक मिळम सन्दर होती है। सर्दो पाकर जब पे कर पानी से अलग को प्राध मष्टे तक फिसायों से मुक्त कर देती हिम बनते तब पाकाश में इनके पारों पर पाय थी । अक्षर के पिता पुराने विचारों के पुरुप थे। रहती है। वह पायु, हिम बमने के समय, इम को शिक्षा की अपेक्षा उन्हें गुर की सेवा-शुभपा पर __ में घुस बाती है। इससे, प्राकार में, कप बढ़ अधिक विश्वास था। कहते थे कि विद्या पढ़ने से जाते है और हमकी भीतरी सूरत पड़ी मुम्दर मही माती जो कुछ होता है गुरु के भाशीर्वाद से हो जाती है। होता है। बस गुल्मी की छपा-दृष्टि चाहिए । प्रत. इनकी की शह-मरत पर माहित होने के एव यदि प्रग पर तुमेराती शेख के पाशीर्षाव प्रसिरिक हम इनसे काम मी उठा सकते हैं। चम- अथवा सस्सा का कुछ फल न.पा तो यह यह कार, हॉट रंगनेवाळे पार पेठसूठे बनाने पाले इन मान कर सन्तोष कर लेगा कि विधोपार्जन में मैंने का से गुरु का काम लेते हैं । मये मये प्रकार के यथाशक्ति कोई बात उठा महीं सभी विधा उसके प्रखम्य नमूने सम्हें इन हिम-कया के चिों से मिल माग ही में म थी तो कैसे पाती! सकते है। ___ मगर सुमेराती शेक्ष स्वयं पाशीर्वाद के कायल जगमाप सना, पी० एस-सी. नथे । सम्हें अपने सेटि पर अधिक भरोसा था। पार, उसी सेटि के मताप से ग्राम पास-पास के गांषी (छन्दन) में मुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए रिहन- मामे पा पैमाने पर कचहरी का मुहरिर भी कलम