पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६४४

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संभ्या ६ ] पम्प परमेश्पर। के से बाल । अव इतमी सामग्रियां एकत्र हो तब भी किया था। हाँ ये स्वयं प्रलमत्ते अलगू चौधरी सी पो न पाये ! ऐसे म्यायप्रिय, दयाल, दीम- केसाय जरा दूर पेठे एए थे । जब कोई पम्चायत में पसल पुरुप गयुत कम थे जिन्होंने उस अषला के माताथा सब दये हुए सळाम से उसका "शुमागमन" दुघड़े को गौर से सुना हो और उसकी साम्त्यमा करते थे। अव सूर्य प्रस्त हो गया और चिरियों की की हो । घारौ पार से घूम-घाम कर पेचारी मळगू कलरय-युक पम्चायत पेड़ों पर बैठी तर यहाँ भी धापरी के पास भाई । लाठी पटक दी पौर दम पम्पास्त शुरू हुई। फर्श की एक एक प्रगुल समीम टेकर बोली- मर गई । पर अधिकांश दर्शक ही थे। निमन्वित ___"बेटा सुम मी छम भर के लिए मेरी पञ्चायत महाशयों में से कैयळ यही लोग पधारे थेजिन्हें सम्मम में चले पाना" । से कुछ अपनी कसर निकालनी थी। एफ कोने में अलग-"मुझे पुस्ला फर क्या करोग ? कई गांष माग सुलग ही थी। मा वामड़ तोड़ चिलम भर रहा के पादमी तो पायहीगे।" । था। यह निर्यय करना असम्भय था कि सुलगते खाळा-"अपनो विपद तो सप के मागे रोपाई हुए उपलों से अधिक धूां निकलता था या चिलम है। मामे म पाने का प्रवतियार उनको है। हमारे के दमी से । लपके इधर उधर दौड़ रहे थे। कोई गाजी मियां गाय की गुहार सुम फर पीढ़ी पर से उठ आपस में गाली गलौज करते पर कोई रोते थे। माये थे। क्या एक पेकस पुदिया की फरियाद पर चारो तरफ़ फोसाइल मम रहा था। गाय के कुचे, .. कोई नौरंगा" इस समाष को भोज समझ कर, मुण्ड के मुणर जमा प्रलग--"यो पाने का मैं मा माऊँगा । मगर पञ्चा हो गये थे। यत में मुंह म खो-गा।" ____ पम्स लोग पैठ गये तो पूड़ी स्साला ने उनसे । स्वाला-"पयों बेटा !" विनती की। प्रलगू-"अब इसका क्या मयाय ५। अपनी "पम्यो । प्राज तीन साल पुएं मैंने अपनी सारी .पुशी । जुम्मन मेरे पुरामे मित्र हैं। उनसे पिगार मायदाद अपने मामने जुम्मन के माम लिमदी थी। महीं कर सक्सा "। इसे पाप लोग जानते ही होंगे। जुम्मन में मुझे हीन स्वाहा-"बेटा क्या विगाय के घर से ईमाम की हयात रोटी-कपड़ा देना कपूल किया था। साल वातम कहोगे"? भर तो मैंमे इसके साथ रो-पोकर काटे । पर प्रष .. हमारे सोये हुए धर्म-माम की सारी सम्पत्ति लुट पत-दिन का रोना नहीं सहा जाता । मुझे न फेट जाय, उसे स्थपर नहीं होती । परन्तु ललकार सुन कर की रोटी मिलती है पीर म सम का कपड़ा। पेकस वह सचेत होगाता है। फिर उसे कोई मीत महीं पेषा कधहरी परवार कर नहीं सकती। तुम्हारे सकता । मलगू इस सवाल का कोई उत्तर मदे सके। सिषा पार किसे अपमा दुम सुना । तुम लोग जो पर उनके हदय में ये शब्द गंज ये-"क्या राह निकाल दो उसी राह पर चलूँ । मगर मुझ में विगार के भय से ईमाम की बात म कहोगे"। कोई पुराई देशो, मेरे मुँह पर थप्पड़ मारो । जुम्मन मै पुराई देखो तो उसे समझापो । यो एक पेकस सन्या-समय एक पेड़ के नीचे पन्चायत बैठी। की प्राह लेता है ? पम्प का हुक्म मलाह का इम शेख मुम्मन मे पहले ही से फर्श पिछा रक्सा था। है। तुम्हारा दुक्म सर-माथे पर चढ़ाऊँगी"। उन्होंने पान, इलायची, मे, तम्बाकू मादि का प्रबन्ध - रामधन मिश्र, जिमकी कई प्रसामियों को झुम्मन ।