पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६४६

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संध्या ६ । पच परमेश्वर। - ... ... . .. ~ mr.n ~~ ...on-in... .. . . . ... .. कर रहा था। इतनी ही देर में ऐसी काया-पसट दिनाई देते । इतना पुराना मित्रताम्पी इस सस्य रोगई कि मेरी जामोदमे पर सुला मुमान का एक झोंका भी न सह सका । सचमुच यह मालू माल्म कप की कसर पह निकाल रहा है क्या इतने ही की जमीन पर महा था। .. दिनों की दोस्ती कुछ भी काम म पायेगी। ' एनमें पप शिधार का अधिक व्यवहार होने जुम्मन शेय तो इसी सहस-थिकस्प में पड़े हुए मगा। एक दूसरे की प्राय-भगत ज़ियादह करने धे कि इतने में प्रळगू में फैसिला सुनाया- उगे। ये मिलते-जुलते थे, मगर उसी तरह से "जुम्मन शेख ! पम्पों ने इस मामले पर विचार तळधार से गल मिलती है। किया। उन्हें यह नीति-सस्त मालूम दोवाकि चम्मन के विस में मित्र की कुटिलता पाठों माळा-जान को माहवार वर्ष विया नाय | हमारा पदर मटका करती थी । उसे हर पड़ी यही चिम्सा विचार है कि साला की जायदाद से इतना रहती थी कि किसी तरह पदला लेने का प्रप- मुनाफा ग्रंवश्य होता है कि माहमार स्वर्थ दिया या सर मिले। " सके। बस, यही हमारा फैसिळा है। अगर मुम्मम को सर्च ऐमा मम्मर म हो तो हिवानामा रद प्रो कामो की सिरि में बड़ी देर सगती है। समझा जाय-" " पर पुरे कामों की सिदि की यह बात नहीं । जुम्मन को भी बदला लेने का प्रषसर सब्दही मिल गया। सुनतेही सुम्मम सपाटे में पा गये । यो अपना पिछले साल असगू चौधरी सर से येत्रों की मित्र हो वह शत्रु का पपहार फरे पार गळे पर पूरी एक बहुत प्रम मोई मीठ लाये थे। बैठ भी फेरे। इसे समय के देर-फेर के सिमा पार क्या कहें। पछाई जाति के सुन्दर, मड़ेपोंगों वाले, थे। जिस पर पूरा भरोसा पारसमे समय पड़ने पर. महीने तक पास-पास के गांवों मेोग इनके भोसा दिया ! ऐसे ही अपसरों पर झूठे-सपे दर्शन करते रहे । देवयोग से जुम्मन की पम्पायत मित्रों की परीक्षा माती है ! यही कलियुग की के एक ही मदीमे याद इस गोई का एक वेळ मर 'दोस्ती है। अगर लोग ऐसे कपटी, मोमेपाल महोते गया । नुम्मम ने दोस्तों से कहा-"यह दगापाशी तो देश में भापत्तियों का क्यो प्रकोप होता ! यह की सजा है। इमसान सामसे ही कर जाय, पर हैजा, प्लेग मादि म्पथायें इन्हीं दुष्कर्मो कैद । .मुवा मेक-यप सम देखता।" भलाको सन्देह मगर रामधन मिभ पार अन्य पम्प पर हुआ कि सुम्मन मेल को यिष दिला दिया है। सायरी की इस मीति-परायणता की प्रशंसा मी चौपणाम मे भी जुम्मम ही पर इस दुर्घटना का मोम कर कर रहे थे। ये कहते थे-सका माम दोषारोपण किया । उसने कहा, सुम्मम में कुछ कर पम्नायव ! दूध का दूध पार पामी का पानी कर करा दिया है । चौधराइन पौर करीमन में इस यिपय दिया ! दोस्ती दोस्ती की जगह है। मगर धर्म का परे एक दिन भूब ही पाद-विवाद एमा। दोनों देवियों पालम फरमा मुम्य है। ऐसे ही सस्पषादियों के मन मे शम्म बाहुल्य की ममी बहा दी । व्याय, पफ्रोकि, पृथ्वी ठहरी महीं तो पह कप की रसातल अन्पाति और रूपमा मादि प्रलदारी में पाई। को पसी जाती। सुम्मन ने किसी तरह शान्ति स्थापित की। उसने इस फैसले में प्रलगू पार सम्मम की दोस्ती की अपनी पती को रट रपट कर समझा दिया। मे बड़े दिला दीं। अम साथ साथ बातें करने महों । उसे उस रण-भूमि से हटा भी ले गये । रमर अलगू