पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६५०

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सन्या ६] ' मनुष्य-शीषन पार पुरुषार्थ । ३९५ पदमावि व समापि मावि साम्यपा मवेत- मे। यो इसके विपरीत हो सका त्याग करे। ऐसा करने में इति चिन्ताविपरोऽयमादा किस पीपते। वा संसार में अपने जीवन को मानम्वमय बना सकता है।। पर पेसे भोग पा विचार नहीं करते कि मनुष्य पेतम पर वीर भी सपा परोस सबविपरिव या पापही अपना विपाता है। यह क्रिया करने राव अपने शरीर नाना प्रकार के कर दिया करता है। में मतलब पन मी रसीदाप में से जिस फम इस प्रकार पर अपने जीवन को इस्लामपबमायेता । की पारसी की प्राप्तिभिए वा कर्म कर सकता है। उसका स्वामकि "याप्त ममत्फताम्" संसार में दो जोग मिप्यावादी या मापावादी है। संसार जितनाही अधिक कर रहा है रप्ते परचोक में उतमाही माया सम्मूत विवर्ण देता है। स्वका कपन कि संसार अधिक सुख और मानन्द मिलता है। भगवान् गैातमबुम मे मिमा । रसके सारे पधार मिप्या है। समस्त मुग ऐसे ही खोगीरेचर में पावर घेर तप किया था। उससे सपिकाइन पगिक सुख के लिए ममुप्प को प्रयन नाग टिने पैठने की एकिकमरा करना चाहिए । ऐसे मेरा दिन राव संसार को उसकी प्रसाद गांभी। मम्त में इस महमा पही निरस्य और साचाद साबिए कोसा करते हैं। पी, पुत्रइश, मित्र, किया कि सब पीर शम्ति शरीर को कर देने से माहों माता-पिता-पाया कि स्वयं अपना जीवन भी मिप्पा पार मिखप्ती । बिमा तिति समान रखकर कर्म करने से मायामित दिमाई पस्ता । दिन रात परोपका स्वप्न मिखतीमा माग्य, काब, मपितापता या पाठा से प्राप्त पारसम्मक भौर पनिमीप विपनों पर माथापची महीं होती। मितु मनुष्य अपने पुस्पार्प से इसे प्राप्त कर विपा करते। ऐसौ मे ही हमारे देश को पर्मभ्य बनाम साता है। सकी पी हामि की है। ऐसे मोगों को, संसार में, चारों ____ सबसे अधिक प्रापक गुण, सो सम्वया और मोर, म दिपाई पड़ता है- पानन्द प्राप्ति के लिए अपेपित है, पति और प्रतिज्ञा मायुर्वपंगतं पूषो परिमिस रात्री पर पतं है। हमें रचित है कि हम सबसे पहले पर सौ किम स्पास्य परस्प बामपरं पावत्यपरत्वपो।। बनना या पाइते ६म से अपने जीवन में सोचम रोपं प्याधि-वियोगदुस्खासरितं सेवादिमिनीयते और प्रादर्य बीवन बना साठे हमें अपने ही मामान मीवे पारितयारसमे सामंता प्राविनाम् ॥ से सन्तुए न राना चाहिए, सपके भानम्व से हमें मान- इतं पापा जाय या अधिक होने से कोई वस्तु दिव होना चदिए । महामाधों का मीकन मैं पही बन्दा असत् पा मिप्या हो सकती है।पर सब कि मनुष्य हा कि इन बोगों में अपने ही प्रानन्द धीर शान्ति बाराबार रसका जीवन परिमित। संसार में ममी लिए प्रमान नहीं किया । मनोने सारे संसार में प्रारम्प है। पर, क्या इतने मात्र मे हम यह मानकममुपद और ग्रान्तिमदान करना ही अपना परम कसम्म जामा । एस, वहीं । संसार के सारे प्पपहार मिप्या है। पर्दा मेणमात्र सुख कृपय प्रादि ऐसे ही भादर्श पुरुय थे। नहीं। संसार में सभी पदाप परिणामी है। परियम्मान सफलतापूर्वक प्रामम्ब-प्राप्ति मार्ग सुगम नहीं। पर फिर क्या इतने ही से कोई बदहीही! माझमाने पर पिसा साप्प मी ही। पापा मार्ग है जिसमें से पषा की तृप्ति दिख होती है सही, पर सरे दिन नि भय और कार मिनर विपरापे पये है। हम ईई. भूत प्रगती है-फिर भोजन करने की भावस्पकता पाती है। पर रखने की मारपस्ता है। मुख से हमें फूलम। तोमा जोग भोजन करना क्या ये मोमयबदले माना चाहिए और दुम्स सेमें पवरामा भी न पाहिए। विप पा लिया करें जिससे मि भोजन ही करना पड़े। हमें अपने पास पर प राना चाहिए भार अपम्म संसार में सुन मी हैदुम्स भी मचाई भी राई मी सम्पपाहम करते रहना चाहिए । गीता मेगा- ममुप्प का तप किया संमार में सवत् विषक से कर्मन्येदापिपरस्ते मा पुयान । काम। मिसेबाम्पकारी और शिक्कर समसे पसका प्रहर मार्मसाइतममा ते समोप्रवर्मपिn .