पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६५२

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संप्या ६ ] मनुप्य-जीयन और पुरुषार्य। है। पर इस सालों वर्षों के भटूर परिभम से भी बिसरे को प्रम था प्रविया करते हैं। यह प्रम में अपनी इन्द्रियों समसिहान के प्रयास असम मी सध्या महीं कर पापा के दोप, असावधामी पौह प्रविवेक से दोधा है। यही मम विधा अनन्त । दम बो व विया-मम्पादन कर सका हेच है। यही कम्पम है। इसी से ले पा सकने पापा पहुत ही कम है। हमें जितनी विद्या प्रम्स करनी का नाम भान है। इसी को मेल करते है। साम्ले पर समुम में एक सा भी मही।इस ANIकरी विधा का प्रपाम सापम पर सब संसार के समय पदार्थों का शान मास नहीं कर पाये । एक मायी सापपर्मा नहीं हो सकते । सहला हिानों में, एक माह में सहनों गुण मरे है।इम किसी वस्तु के एक रिस प्रकार दो चार पुद्धिमान होते म्सी प्रकार साता गुपने मान कर ससे पाम माते बी 1 पर सी बस्तु बुद्धिमान में की एक प्राप देवयोग से माया में अनेक ऐसे भी एप विचमान बिबसे बाम गठाना तो निकम मोठा है। पर साधारयोगों लिए विचा पड़ना पर की बात, ममी तकदम मका काम भी नहीं मा। और पहाना, तथा शामों का प्राप्याप भी विद्या की प्राप्ति हम इसी संसार में उत्पन होते। इसी में रात दिन अपना साभव हो सकते हैं। पहत दिन नहीं दुप, सहसा में जीवन बिताते हैं। यदि हम अपने जीवन के एक प्रेस मान कहीं एक ग्राम पड़ा सिमा प्रारमी मित्रता पा। भाजय को मी प्रहति की शक्तियो और तस्वो के गुग मनने में अंगरेपी सरकार की पा से पढ़े-विजों की संपमा प बागायें और हम अपने जीवन में किसी गुण के एक प्रेश अधिक हो गई है। यह पेशकार किसने दी सोग पह कहा को भी मान जाये तो हमारा मीपन समय। तमी म मते कि मास कस सिवा प्रावसकता से अधिक है। अपने पास साल से अपने पूर्वजो के ज्ञान-मान्दार को पड़ा गई। मिल पड़मे की हद मावस्यकता नहीं, मान लके सकी। वमी दम पितृपय जुका सरेंगे। तभी मनुष्य भी वाके पास्यावानी में पाए मिबते मला, समाज मारा सदा के सिप कपी हो सकेगा। परि म इतना पड़मा इमारे किस काम मावेगा। जिसमा सपा इसमें प्रकायेम मीप तो भी पार नहीं करा पा सकता परको पाने में सामना तो जीवन भर में किमारा समय निस्क गया ।प्पोकिने समय में हमारी मा सकेंगे। पदिदी सपा, मो नकी जिला में अपनशारीरिक और मानसिक प्ति भरपदी हुई। किया जाता है, के लिए सो बार तो रस मनुष्य-सप्ति पदि अपना भम, पोम, पुरुपार्य भौर समय से अपना सीवन मुख से निर्वाह कर सहते हैं। किसने अपनी ही मातियोगों को हानि पहुँचाम सार्य सामने ही मोग मा सोचते कि हमें पड़ने चिलने से कोई माम में प्पय करे, तो इससे बहकर बेद की बात और चारोही । इमारे पदके पदे-सिले बिना ही अपनी पैतृक सकती है। विधा के समय को प्रम्स करने की यो बाति सम्पत्तिमा काम से पूर्व प्रममा निर्वाहर समी। पर उपपुर पेरा वहीं प्रती पर सपा मम्पमागिनी बाति ऐसे मोग पा नहीं समाते कि मूर्त मनुप्म पदे-मिलों की दूसरी धन हो सकती है। अपेक्षा प्रपने धन का अधिक अपम्पप करते । उसे म्प4 सम सपा पुकाबह सब धर्म, सारे पीर कामो में पगाते हैं। इससे नारा स्वर्य कुछ साम देता है, भाति पालिए समान है। सा मीठा पता चूसरी ही को कप पाम पचता है। सदा हुस्ती रहते है। और दो गोदने से सदा पार होते हैं। यकी चाई में स्म में भी सची शान्ति पीर मानन्द नहीं मिलता। जितनी परीक्षा श्रीवाय सदा एकही मागे। भीमय कितने ही शोग चीवन की मम्मत प्रयाको मानन है।पही हाल है। पही विज्ञान है। इसी के आमने से हेचिए दिनमात मापा-पपी फिमा करते हैं। अपने मान- मनुष्य कम हो सकता है। संपार समम्त पदार्पो में सिक प्रोमको प्रनिर्वचनीय दावों की पोर में प्य र पही सम पास है। इसी समग्रेविया करते। पी ,बरसे। यदिरे से किसी और काम में लगातो रसमे • सारे मुद का.मूल है। पर सास का माममा कठिनामी भनेकोकोपपोयी काम कर सकें। नियबाम का तो कमी क्या प्रापा मया ही इमाम सममते हैं। इसी टिकामा दीन रे । म्मावान् ने गीता में मारे-