पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६६६

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संण्या ६ ] हर्ट स्पेन्सर की डेय-मीमांसा। . ४०३ . दृश्य पर दूसरे भन्द-दृश्य कहे जा सकते हैं। कर । सारांश यह कि एक प्रडेय शक्ति तो मम्द- स्पर-सश्य कार्यों का अनुमय पहले होता हश्य कार्यों के रूप में दिखाई देती है पर एक है, मन्द-दृश्य कार्यों का पीछे । पर्यात् पहले स्पट-दृश्य कार्यों के रूप मै । क्योंकि पिमा शक्ति स्पर हपय कार्यों का अनुभव होता है पीछे मन्द विधान के कोई पदार्थ दृश्य नहीं हो सकता । यदि दृश्य कार्यों का पियोंकि तब तक किसी ने जिहा से शक्ति म छत से कुछ भी हश्य महो। जय कुछ हदय किसी पाच का स्याद महीं लिया प्रथया मम तक ही म होगा तव स्पप्प-हश्य पौर मन्द-तपय कार्य मासिका से पुप्प की सुगन्धि मही सूंधी तम तक कैसे होगे? प्रतएव इम सब हश्यों का मूलाधार स चाय के स्वाद प्रथया उस पुष्प की सुगन्धि कोई शकि अषश्य है। का यह चिन्तन नहीं कर सकता। अब हम पूर्वास दृश्य कार्यों के सम्बन्ध में ____किसी वस्तु का भाष मम में तमी उदित हो सत्यता का विपरण संक्षेपता करते है- सकता है सब हमने उसे एफ फार कमी प्रस्पक्ष देखा सत्यता दो प्रकार की है-पास्सयिक पौर हो। इससे यह ज्ञात हुआ कि स्पर-श्य कार्य प्यायहारिक । यह लिना मा युका है कि संसार के प्राय है पार' मन्द-दृश्य कार्य उनके अनुगामी प्रथया मूल-तस्य अर्थात् काल, प्राफाश, प्रकृति, गति,शकि प्रतिविम्म मात्र है। पहले कार्य ऐसे हैं कि यदि पार मम-प्रमेय है-मर्थात् इम इनके कारण इम पाहे तो भी उन्हें प्रकट नहीं कर सकते, महीं जान सकते । धास्तप में ये क्या पदार्थ है, परन्तु दूसरे हमारी इम्मा के अधीन है। उदाहरण कोई नहीं बता सकता, परन्तु व्यवहार में ये कैसे लीजिए- दिस्माई देते है, यह विषय हमारी दुनि-परिधि के देपदच का मित्र रामद है। देषच भागरे में अन्तर्गत है। भर्यात्-युधि मारामासे शाम सकते और रामदच कामपुर में रहता है। जिस समय है। प्रसपष हम यह महीं बता सकते कि संसार की इच्छा हो उसी समय रेयस स्मरख-शारा रामदत षास्तविक सत्यता कैसी है। हां, हम उसकी व्याय- का स्याम मम में कर सकता है। परन्तु वेषदत्त को हारिक सत्यता का यियार कर सकते हैं। इसी को शरीर-सहित रामपर का समी साक्षात्कार होगा दूसरे शयों में यो कहमा चाहिए कि संसार नम रामदत्त स्वयं देषस के घर उपस्थित होगा। हमारे लिए थासषिक सत्य नहीं, वह प्यावहारिक केवल देवदत्त की थ्य से ही रामदत्त शरीर-सहित सत्य है। इस प्यायहारिक सस्यता के भी वो मेद उपस्थित महाँ हो सकता। इस उदाहरण में शरीर- है। एक स्पष्ट हस्य कार्यों की प्यावहारिक सस्पता, सहित रामदत्त स्पए-कार्य है और उसके रूप दूसरी मन्द-दृश्य कार्यों की प्यायहारिक सस्पता। का स्मरण द्वारा विष का चिन्तन मन्द-दृश्य कार्य। देयदत्त यहाँ उपस्थित है। मैं उसे देख रहा है। देय. स्मरण करमा हमारी इच्छा के मधीम है, पर दत्त यहाँ उपस्थित नहीं है, परन्तु स्मरण शारा- जिसका स्मरण किया जाय उसकी उपस्थिति इमारी कल्पना द्वारा-मैं उसे सामने रपस्थित देखता हूँ। इच्छा के प्रधोम नहीं। इन पायों में से पहले पाक्य में स्पप-प-कार्य- __ स्पष्ट-तपय कायों की पदार्थ (Object), प्रशीय सम्बग्मिनी व्यावहारिक सत्यता है और दूसरे में (Non-ero) अथवा अनारमा (Not-relry कह कर मन्द-दृश्य-कार्य-सम्यन्धिमी सत्यता। पहले याश्य की यक करते है और मददृपय कार्यो की पाता सत्यता में सन्देह नहीं। इसलिए प्यायहारिक हरि , (Subject), नीय, (Ego) अथवा पारमा (Sel) कह से उसे चामयिक सस्पता कहना चाहिए पर दूसरे