पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६७०

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संभ्या ३] हर्ट स्पेन्सर कीम्मीमांसा। ४०७ प्राफाश का मेद मालूम होता है। यदि यह लमण झाम नहीं हो सकता । हम ऊपर लिग माये, कि म हो तो केवल प्राकाश का रूप ही रह जाय, यह इम धानों का-काळ प्राकाश और प्रति का-पान मरुति म रई । इसके अतिरिक्त, इमै ओ अनुमय शक्ति के अनुभष-विपयक समाधान से ही होता पहले होता है यह प्रतिरोपता का ही होता है, है। प्रवपप गति का पान मी शक्ति के ही अनुमघ विस्तार का महौं। विस्तार का बोध प्रतिरोधताके से होता है।इस धाम में पहसे शरीर के मिन अनुमयो के प्रयोग से होता है । कहने का तात्पर्य मिम मागो की पे गतियां मालूम होती है जिनमें यह है कि प्रादि में शक्ति के ही अनुभव होते हैं आपस में कोई सम्बन्ध होता है। ये गतियाँ स्नायु. पौर षही प्रकृति के शान के प्राधार है। सम्यन्विनी घेरानो से उत्पन्न होती है पार स्नायु- प्रकृति, हमारी पानापस्था में, शक्ति के रूप में सम्यन्घिनी घिसति के माये! के रूप में पुरि-कान में पर्तमान रहती है। इसलिए यह हमारी स्नायु- दिखाई देती है। सम्बन्धिमी घेटामो (Muscular Exerions ) की इसलिए किसी भी प्रषयय का प्रसरण प्रयपा प्रति-कृषता करती है । अनुमधे के योग से मालूम समेषन उस अषयय के घूमने की गति के अनुसार. होता है कि प्रकृति प्राकाश को प्याप्त कर रही है। पहले पहले ही, मायु-सम्पन्धिनी विततियों के माला- मतलब यह कि प्रकृति ऐसी ही शक्तियों की यनी रूप में, मालूम होता है। गति का यह प्रारम्भिक हुई है जो कोई न कोई विशेष सहयों सम्मन्य बोध, जो शक्ति के अनुमघो की एक माला है, रखती है। प्रकृति का यह बाम उसकी प्यायहारिक भाकाश पीर काल के पोष के साय हड़तापूर्वक सत्यता का नाम है। उसकी वास्तविक सत्यता के मिस जाता है। प्रथमा यो कहिए कि गति का परि. विपय मै कुछ मही कहा जा सकता। सहान के पक्ष षोष, प्रारम्भिक बोध के समय, प्राकाश पौर चिपय में इम यही कह सकते है कि यह किसी प्रक्षेय काल के पोप के परिपरू होने के समय ही हो कारण का प्रयस्थान्तर है। यह पास्सधिक सत्यता जाता है। महीं । तथापि यह सत्यता इतनी पटट है कि संसार यह गति का पोध म्यावहारिक सत्यता है। प्रत. के सारे कार्य इसी से चल सकते है और इसे पब इससे यह बात सात होती है कि इसकी वास्त- मानने से बहुत से उपयोगी नियमो का प्राधिकार थिक सस्यता भी कुछ म कुछ प्रपश्य होगी। परन्तु हो सकता है। इसके विपय में कुछ कहना हमारी दुरि के परे है। गति (MOTION ) कोई न कोई प्रमेय कारण अवश्य है जिसका कार्य गति के रूप में दिखाई देता है। गति के कान में काल, पाकाश, पार प्रकृति इम सीमों के मान का समावेश है । पयोकि गति का बाम शक्ति (FOROE) होने के लिए ससे पहले तो कोई ऐसी वस्तु होनी कार, प्रकाश, प्रसि पार गमि-बम सम का चाहिए आ धरती हो, दूसरे, माकाश विद्यमान होमा माघार शक्ति है। महति और गति अनेक प्रकार के घाहिए, जिसमें वह चले। तीसरे, समय भी विध- मानसिक सम्पन्यों के मेल से बनी है और इम मान होना चाहिए, जो उस वस्तु के एक स्थान से सम्पन्धों के रूप-सार से प्राकाश पार काल पमे दूसरे स्याम की माने में प्रायश्यक है । प्रर्थात् काम, हैं। इन सम्पयों के परे शाकि के प्रारम्भिक अनुभव ग्राकाश पर प्रकृति का पान हुए विमा गति का है। कोई भी घेतम भूत, जिसमें मामसिक कल्पमायें