पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६७२

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संध्या १] हर्ट स्पेन्सर की पेय-मीमांसा । ४.४ (३) वैज्ञानिक तत्वों के फिर पानी के रूप में लाया जा सकता है। पर्या का जल षहीमो पहले माफ षम फर हमारी दृष्टि की व्यापक नियम । पोट में हो गया था। मामषची असते अठते लुप्त हो काल, प्राकाश, प्रकृति, गति पर शक्ति,ये आती है। पर वह अपने परमारों के रूप में प्राय धानिक तत्यानका वास्तविक अस्तित्व (Real रहती है। यह न समझना चाहिए कि ससका सर्षया Existence) कैसा है, यहखाभमादमारी पुरि के परे नाश हो गया है। उसके परमामुतो वैसे ही पर्वमान है। इसका ध्यावहारिक प्रस्सित्व (Phenomenal रहते है-ये तो वैसे ही ज्यों के स्यों बने एते। Existence) कैसा है और इनका शान कैसे होता है, उनका रूपान्तर माप हो पाता है। रसायन शास यह सब हम पहले ही लिममाये हैं। मच दम तत्त्या से (Chemistry) के प्रचार से इस सम्बन्ध में मनुष्यों सम्बन्ध रमनेवाळे म्यापक नियमो का निरूपण सुनिए- का शाम पास अधिक परिप्त हो गया है। इन पांच तयों में से कालपार प्रकाश के प्रय तो यह नियम अखणनीय मामा मावा है। विषय में पहले ही लिया जा चुका है। प्रतएव अष- इस बात के सिर करने में कि प्रकृति का माश नहीं शिए सीन ही तत्वों के नियम बताना है। होवा, प्रारम्म में पिना ममायो के ही, यह सिशान्त मान लेना होगा। क्योंकि प्रकृति को मामय सिर करमे प्रकृति का नियम । के लिए जो प्रमाण दिये जायेंगे उनमें यह पात पदले किसी भी प्राकृतिक घस्तु का प्रभाव नहीं हो ही से मान ली गई है। इन प्रमायों में से वाहना सकता, पर्याय मछति का माश नहीं ( Matter is (Weighing) मुख्य प्रमाण है। परन्तु तोलने के बाट Indestructiblo)-पहप्रक्षय है । प्रकृति का रूपा- (Voights) प्रकृति के बने हुए हैं पार यदि उनके म्वर अयश्य होता है, परन्तु उसका सर्पया क्षय एक से बने में विश्वास न किया जाय तो वोलने प्रपया प्रत्यम्तामाव होना असम्मथ है। की क्रिया भी भ्यर्थही सिर हो जाय । यदि प्रकृति के प्राचीन काल में मनुप्यों का पिण्यास था कि अंश एक सेम होते तो तपामे पीर गलामे पर. माछतिक वस्तुयें सर्पया मर हो जाती है। पर्यास् सोमा नष्ट हो जाता। परन्तु ऐसा नहीं होता। उसका उनका नितान्त प्रभाव हो जाता है। उनका यह भी एक भी परमाग कम महीं होता। इसी तरह रुपयो खयाल था कि सपि मई होती है। उसकी उत्पत्ति की ताळ लोहे के पटिी से होती है पीर तोल से यह समय समय पर हुमा करती है । विज्ञान के प्रचार निश्चय हो जाता है कि रुपयों की संख्या ठीक। से इस विश्वास का अब सोप-सा हो गया है। पुच्छळ ऐसे किसने ही उदाहरण पर भी है जिनसे प्रकृति तारा (Comet) कमी कभी माफाश में अकस्मात् की प्रसयता सिद्ध होती है। दिमाईवने लगता है। इसका यह पर्पमहीं कि उसकी फाई मयीम स्टष्टि हुई है-उसका पुनर्मन्म हुआ है। गति के नियम । बात यह है कि पहले यह छिपा पुमा या, प्रवएष गति के तीम नियम है:- हमारी परि फी पार में था। पर अप पूमते घूमते (१) गति में विराम नहीं है (IMotion is Con- यह इमारी दृष्टि के सामने भा गया है ।सो पानीमाफ tinuons) अर्यात् गति रकती महीं ठहरती महीं, के रूप में होकर हदि से सोप हो जाता है, अर्थात् पह निरन्तर होती रहती है। यदि ऐसा नियम म जो विपाई महों देता, यह पैवानिक साधनों द्वारा होता तो सवितृ-मण्डल (Solar System) में नक्षत्रों