पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६७६

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. संम्या ६] । सगया का समय। ४११ से यह रेय पाहुत बढ़ जायगा। प्रवपथ यहाँ पर (३) शक्ति का रूपान्सर होता है। परन्तु कपा- पे नियम स्वरूप में ही बता दिये गये हैं। म्तरित प्रयस्था में भी उसका भार भयपर बता (Transformation and Equivalence of शक्ति के नियम । Forces). विपच्य न (Scionce of Electricity) इन शक्ति दो प्रकार की है-यक्त (Active- नियमों को घटद प्रमार्या से सिर करके दिखा रहा Energy) पौर अश्यक (Dormnnt-Force) । व्यक्त है। गति के नियम जैसे संसार के सभी पदार्थों में शकि परिवर्तन-कारिणी है, अन्यक-शक्ति परिवर्तन- पाये माते है से ही शक्ति के नियम भी सर्घष पाये कारिणी महीं। लफदी में अलने की शक्ति रहती है। जाते हैं। अब तक यह प्रष्यक है, छकदी नहीं अलसी । अष सविस-मडल, पायु-भणाल, जीपपारी, मान- यह यक होती तब लकड़ी जलने लगती है। सिक भाय पर सामाजिक परिवर्तन-सभी में दोन प्रकार की शक्तियाँ निरन्तर स्थिति वाली है। शक्ति के नियमों का निदर्शन विद्यमान है। यह महीं हो सकता कि शक्ति कमी न रहे। शकि प्रम तक जो नियम लिस्ने गये घे प्रस्पेक तरव के का प्रभाव नहीं हो सकता। जिस प्रतिरोधकता पृथक पृथक नियम है। परम्स दृश्य जगत में, मष्टि (Resistance) का अनुभव हमें पहले होता है षही के समस्त पदार्थों में, पे सव सत्य अमेक प्रकार से शक्ति-सूचक सहेत है। मिळे पुप दिखाई देते हैं। प्रवपप उम नियमों का शक्ति के मुख्य नियम ये है:- मानना मी प्रत्यावश्यक है सो सघ तत्त्वों से मिल (१) शक्ति की स्थिति निरन्तर है (Persistence . फर संसार में व्याप्त है पार को संसार की स्थिति कर संसार में व्याप्त ६ of Force). पीर नाश के कारण है। (२) शक्ति के जितमे सम्बन्ध है उममें भी यह [प्रसमाप्त निरन्तर स्थिति पाली है। (Persistence of Rela- फनोमल, एम० ५. tion among Forces). सन्ध्या का समय । बेखा जिसका मुमग पप देव-वेग से होता है प लिप्त पात्र ही वनरोग से। हमारय-विचर गरी गसमें पता इसी हेतु पहकमीमो दुस मी सदया है। पही सूर्य मो इस पड़ी बयारेमिए। कितने ही इस बात में अयि काम इसके लिये 1 . मिसनी देगी पटि, न भी इसका शेगा, गिसम होगी वृद्धि, रास मी उसका होगा। जिसका न्यान, पठन भी इसका होम विसकामायमम, गमन भी सका दोगा। सदित मा पा सूर्य मी वेगा धि क्यों नहीं। पो किन्तु र चापगे पा अपमय इसके पही। को डेगा इसे कभी मवाना दोया,मो बम्मेगा रसे कमी मर बाना देगा। इन याती पर पान किन्तु क्या सन देते tira अन्याय पाप नित ही ki .