पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६७८

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पाल्पा १] । मृत्यु का मया रूप। . YLKUD प्रन्याम्य प्राणियों के शीषम का कस्य हो सकता है। पर मनुष्य-जीयन का यह सम्य महो। मनुष्य पात A वि-मगत् की पौर स्थूल माघ से पहरी युरि का अधिकारी हो कर अन्म सेवा है। TA Eपि गलने पर मालूम होता. रसको यश की रक्षा का प्रयोमन बहुत कम है। र फि अपने अपने यश की प्या इस दशा में यह स्थीकार करना पड़ेगा कि प्रकृति ससा करना ही प्राणियों और उद्भिदों देवी ने अपने हाथ से जो शक्ति मनुप्य फे शरीर में के सन्म का मुख्य शहै। निहित की है उसका उपयोग प्रम्पाम्प प्रयोजनों की विधि माबी और शनि दोनो की रत्पत्ति के लिए भाषश्यक है। मोदी, इस कठिन दार्शनिक एफ एफ सूक्ष्म जीव-कोप से होती है। यह खीष- विचार की प्राचना करमा इस लेख के लेखक की कोप गर्भ में प्रमेक कोपों यासा हो कर माना प्रकार शक्ति के बाहर का काम है। हमारा पालाव्य विषय के निर्दिए प्राकार धारण करता है। इस प्रकार के यहां 'मृत्यु । मृत्यु की तरह कठोर सत्य, मालूम प्राकारी को धारण कर यह पूरी प्राणी पा इनि होता है, संसार में दूसरा नहाँ। . वम मावा है । इम प्राणियों और अनिदो का शरीर पृथ्वी के सभी प्राणी मनुप्य की तरह मरिक अब पाकर पूर्ण हो जाता है तष पे एक कोफ्-मय इन्द्रियों से युक्त हो कर जन्म महीं खेते । जिनके प्रनेक नयीन जीय पैदा करके अपने जीवन की मात्र, कान, नाक पौरसीम नहीं, ऐसे भी प्राणास समाप्ति करते है। इस अवस्था को पहुँच कर ये प्राणी भूमण्डल में कम नहीं। ऐसे प्रायी प्रचेतन की तरह पार रनि प्राति से मानों अपना सम्कप स्पाग बळ या स्थल में पड़े रहते हैं। साने की कोई चीज़ देतेरस समय कैपस मृत्यु की गोद ही इनका उनके शरीर से लगते ही उसका सार-मागणूस कर प्राश्रय होता है । गत से प्रोपपिनातीय रशिप घे अपमा पोषण करते हैं। इनमें सी-पुरुप का मेष तो एक ही पार फल दे कर पल बसते है । बहुत भी नहीं देखा खासा । मालूम होता, अपने शरीर से प्राणी भीसम्तान पैदा करने के साथ ही मृत्यु को को पर खण्ड फरफ पंश-विस्तार करना ही इनके प्राप्त हो साते है । इस दशा में हमे देव पड़ता है जीयन की सार्थकता है। इन सब प्राथमिक प्राणियों कि सारे संसार के चक्र के भ्रमण के साथ प्राण का की मृत्यु की परीक्षा करने से विदित होता है कि जीवम भी खूब भ्रमण कर रहा है। सरि के इनकी मृत्यु एक साधारण बात है। उसमें किसी प्रारम्भ से ही प्राषि-जगत् में एक-कोप पाठे शीष प्रकार की मटिगतामही घत में गर्मा पहुँचामे से जिस से पार एक मपे कोप पाठेशीष की रस्पति होती प्रकार यह तरल हो जाता है, इनकी मृत्यु का भी ठीक चली पाती है। अपने घंश के प्रवाह को स्यों का स्यों यही हाल है। जीवन का कार्य समाप्त कर गुफने पर बनाये रख कर मर खानाही जीवन की सार्थकता है। धीरे धीरे इनका शरीर पिपिसर होजाता है। पम्प प्रर्पोक विवेचन से यही प्रतीत होता है। , भूतौ का बना हुआ या शरीर फिर पम्च-मूतो में जीषन पार मृत्यु के सम्मान की पूर्योक बातें मिल पाता है। किन्तु रव प्रापयों की मृत्यु बह-पिपानियाँ ही की कही । माता-पिता से उनके शरीर की सटिल धमायट ही के सहश भाक- जम्म मेकर प्राचार प्रादि वारा शरीर को पुए स्मिक पोर मयामक है। स्टीम इञ्जिम जैसे मटिस करना पार अन्त में अपने जीवन का प्रवाह अपनी पत्र का यदि कोई कल-पुरमा नराम हो जाय तो सन्तान की रेह में सर कर मर साना रमिद और उससे कैसा कर्कश शष्य होने लगता है. शीघ्र ही