पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६८०

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पंच्या ६] मृत्यु का मया रूप। ४५ . मृत्यु का नया रूप। अन्याम्य प्राणियों के जीवन का लक्ष्य हो सकता है। पर मनुप्य-जीयन का वारस्य नहीं। मनुप्य पहुत RAJA सि-मगत् की पौर स्थूळ भाष से बड़ी बुद्धि का अधिकारी हो कर जन्म मेता है। HTRA रिशासने पर मालूम होता. रसको घंश की रक्षा का प्रयोजन बहुत कम है। कि अपने अपने वंश की रक्षा इस दशा में यह स्वीकार करना पड़ेगा कि प्रकृति करना ही प्राणियो पार उद्भिदौ देवी मे अपने हाथ से ओ शक्ति मनुष्य के शरीर में के सम्म का मुख्य गोश है। निहित की है उसका उपयोग प्रन्यान्य प्रयोजनों की सिरि प्रायी पौर रनिए दोनो की रत्पधि के लिए प्रावश्यक है ।जो हो, इस कठिन दानिक एक पक सूक्ष्म जीव-कीप से होती है। यह मीष- विचार की प्रालोचना करना इस लेम के लेमक की कोप गर्म में अनेक कोपो पालाश फर माना प्रकार शक्ति के बाहर का काम है। हमारा प्रासोन्य विषय के निर्दिष्ट प्राकार धारण करता है। इस प्रकार के यहाँ 'मृत्यु । मृत्यु की तरह कठोर सत्य, मालूम प्राकारों को धारण कर यह पूर्ण माणी या रसिद होता है, संसार में दूसरा महों। पन जाता है। इन मापयो पार, अनिदो का शरीर पृथ्वी के सभी प्राणी मनुष्य की तरह पाटिल सब पड़ कर पूर्ण हो जाता है तब ये एककोफ्-मय इन्द्रियों से युक हो कर सम्म नहीं लेते । जिनके अनेक नवीन जीष पैदा करके अपने बीयन की मांस, कान, नाक और बीम नहीं, ऐसे भी माणास समाप्ति करते हैं। इस प्रपस्पा को पहुंचकर ये माणी मूमपाल में कम नहीं ऐसे प्राणी प्रचेतन की तरह पार रङ्गिद प्रवति से मानो अपना सम्बन्ध स्याग बल या स्थल में पड़े रहते हैं। पाने की कोई चीज़ देते हैं। इस समय केषल मृत्यु की गोद ही इनका उनके शरीर से लगते ही रसका सार-भाग यूस कर भाभय होता है। मात से पोषधियातीय उद्भिद घे अपना पोपण करते हैं। राममें स्त्री-पुरुप का भेर तो एक ही बार फस दे कर पल बसते हैं। बहुत मी नहीं देखा जाता । मालूम होता है, अपने शरीर से प्राणी मीसम्मान पैदा करने के साथ ही मृत्यु को को भए सट करके पंश-पिस्तार करमा ही उनके प्राप्त हो जाते है। इस दशा में हमें देख पड़ता है जीवन की सार्थकता है। इन सभ प्राथमिक प्राणियों कि सारे संसार के चक्र के भ्रमण के साथ प्राणी का की मृत्यु की परीक्षा करने मे यिवित होता है कि जीपन मी खून भ्रमण कर रहा है। एष्टि के इनकी मृत्यु एक साधारण वात है। उसमें किसी मारम्भ से ही प्रात्म-जगत् में एफ-कोप पाठे शीष प्रकार की जटिलतामहीं।घत में गर्मो पहुँचाने से जिस से पार एक नये कोप पामे श्रीव की रस्पति होती प्रकार यह तरळ दोभाता है, इनकी मृत्यु का भी ठीक चळी भाती है। अपने घंश प्रषाद को स्पो का स्पों यही.हाल है। बीयम का कार्य समाप्त कर युक्ने पर बनाये रख कर मर जानाही मीवन की सार्थकता है। धीरे धीरे इनका शरीर थिदिलए हो जाता है। पत्र पूर्योक पिवेषम से यही प्रतीत होता है। , भूतो का बना हुआ पा शरीर फिर पञ्च-मट में मीवन पीर मृत्यु के सम्बन्ध की पूर्वोक बातें मिल जाता है। किन्तु पच प्राणियों की मृत्यु महा-विज्ञानियों ही की कही हुई है। माता-पिता से हमके शरीर की जटिल बनावट ही के सहश प्रार जन्म ले कर माहार मादि के मारा शरीर को पुर स्मिक और भयानक है। टीम इन्जिन जैसे नरित करना पीर प्रम्स में अपने प्रीयम का प्रयाह अपनी पत्र का यदि कोई कल-पुरजा वराम हो जाय तो सम्ताम की देर में साल कर मर माना रझि पार उससे कैसा फर्कश शम्द होने लगता है। शीघ्र ही