पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६९४

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संख्या ६] थियिष विषय । ४२३ - - - - - इन बाय-पतिपों का विस्तृत सन २. मई की किसी परीक्षा में नियों को इतनी सपमता पहुई थी। के मेकर पाप ईरिया में प्रकासित मा है। न ग वाम पम्बावियों के लिए पा गौरव की बात है। इम पास मतियों में पा सस्ते हैं, उनका चुनाब मिस तरह उत्तीय बड़कियों में एक मुसलमान, तीम हिन्दू और तारा किस देश में गोमपान के लिए माना पांच देशी फिरिन । मुप्तक्षमान परकी नपामा चादिप और विस कामेय में मरती देना पारिप-५ नम्बर पाया है। भाप पभाष चीफ पोस्टिस शायरीम गि गाममा दो पे पूर्ण गैर देखें। की कन्या है। बाकियों ने पार किनिय कामेग पति पार को बाप विदेश से अप्पपन मवायो से परीक्षा दी थी और शेष तीन ने भागी तौर पर । गमको भारत में नौकरी मिवना सरकार के मुमीते पर १५-मुसलमान-कवि अहमद-उल्लाह । भक्चम्मित है । मरकार गर्ने नामी देने के लिए हिन्दी के प्राचीन कबिपो भार प्राचीन पुस्तकी प्रतिज्ञापन नहीं। सोम की बात मारपसा है। इस सम्बन्ध में कप काम ११-"प्यापारी' का यिशेप पट्ट। हुमा अस्प है, पर यह बात पोड़ा है। पर काम बहुस या भर "प्यापारी" दूसरे पंकी पाली सस्या है। प्राथमियों के करने सहै। एक दो से पानी समता । विविध विषय और सम्पामा को कोरर इसमें रेख पाम में एक मुसल्मान-कवि का परिचय कराने की और कविताये। सम्मा १८ और मूत्प) है। इसके पेप्टा करता हूँ। ग्नका नाम है-मामपगताइ । पेपर- से और बेचने की नामाची नीचे दी जाती है- रिपाबार के रहमे पाये थे। फारमी, परपी और हिन्दी के अप्पे ज्ञाता थे। मान पवा, रितीपति मुहम्मवयाा - (पिता) बाबू मैयिनीयरय एस। परवार में पाप किमी प्रतिष्ठित पद पर नियुक ये। २-मापान की भौगोगिक पति–माावीरप्रसाद द्विवेदी। भाप फारसी और हिम्दी देन मापाचों में कविता करते ३-पोरप में पापिम्प-विधा-श्रीयुत प्रामाराम, बी. ए. पे। पारसी की कविता में माप अपना मनास कमी 1-पोमन-अन गवापरसिंह। रखते थे और हिन्दी में पपिया ५-काबपुर की राति-पाचा सीताराम | इस कवि का मासस-पप-विपक पुष प्रम्य 4- देशी म्पापारियों । पण्डित विचनाप गोश मागाये, शिपा मुझे मानपुर के राजकीय पुस्तकाबय में मिखा है। समा --म्पापारिक चितामनी) पमित मापापय मार्ग नाम परिय-विवास है। उसमें वित्त और वो (कविता) । बी.. मन्म देखने से मासूम होता है कि यह कवि अपने -फर रिम्नमाई मापनाव-सम्पादक । विषय प्रप्रया पण्डित पा । पर पड़ी सरप और मपुर १-यापार (कविता)-सारिवाचार्य पमिस मगर भाषा में वित्तमचना परत पा। प्रसाद मिम, पसी। बि अहमद-हार मे सिवा कि मापापी १. साडीबापू शिवनारायण । महरता पर मुग्प शेम ही मन पर प्रम्प जिलाप्रतः इसी से पास प रे होने पर इस कपिके दिम्दी-प्रेम को देख कर इस की कविता पर रोमामा । कमर्शय प्रेस, टहरी, कामपुर से या प्रकाशित मो सदा सत्परती पर इसके भावों पर मनन बनने देता है। से पीर मी अधिक होती है। इसी कविता से सूचित होता कि पापिहपका मट या। १८-सम की सप पास। या-रस के अनेक मान्य विद्यमान रहते भी इस कवि पम्या विविधायप की एफ. ए. परीक्षा में इस मे मी, अपने समप की रांची के अनुसार, इसी मोर पपिक • पर्प। गरिमा मौकई थी। अशी की बात है, मो प्याम विपा । इसी रस के पोपकारकरित इसने इस प्रन्य पास दो गई। भारत में इससे पाये किसी विवविधान में मिले हैं। या दोहों और पवित्रों में प्रम्य भयो यसो