पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/९

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"जीर्णज्वरान्तक"। लखनऊ की नायाब चीजें हमारे यहाँ गोये पसलमा, सितारा पटोपिया, जरदोजी, पट्ठाय माळ चिकन का कुरता, साहो, . स्वर चाहे कितनी भी घेर से क्यों न सता रक्षा 4 टोपी यगेरा सप घी बहुत किफ़ायत से भेजी जाती. हो, सूक्ष्म ज्यर हर समय यना ही रहता हो, रोगी है।एफ पान मंगा कर प्रासमाइये। सुन कर पेहाल भी हो चुका दो, प्रलेपक (तपेदिक) माल मंगाने का पता- के लक्षण भी वम चुके हो तो भी हताश न हायें । बनवारीलाल जैन एक ही सप्ताह के सेयन में बेस लेंगे स्वर कैसी गोटेयाले, धाक बाजार, मखमळ । उयित रीति से घटने लगता है और ताकत प्रतिदिन सचित्र कैसे पढ़ने लगती है। नियों के प्रस्त ज्यर के लिए "बासपापधिमम" एक शेयोपयोगी भी इससे उसम अन्य प्रापध महौं । प्रपश्य परीक्षा अपूपं पुम्कापिना मृम्प वितरण । शीना } याम्प है। पूर्ण भारोम्यतार्य १ दिन के लिए ४२ करो, और माने पर पहनाना पांगा। खुराक का पूर्णमक्स ५) पापा कीमम RIII) अभ्यश-कलासकीर्ति पाश्रम, बद्रिकाश्रम, गपाल । "अर्शविमोचनी"। श्राप सोचते क्या है पदि भार मार शिरपीता के कारण म्यास! किसी वा में पाराम नहीं लगता ? मो भाप सोचते क्या वयासीर के रघिर-मयाह से रोगी जितना भी मुरम्त दीपारम्पदाता कारमपी मा मुगन्धित कामिनी- यिन्लास देश मंगा कर मगममा गुरुपरमिप । पाये ही क्षीरठ क्यों न दो पुका दी, मससी की पराश घुमके दिन परे पर आप तो हमारा जिम्मा प्रथम श्रेणी का पार पर्व में पार भी प्याकुल कर ग्पा दो, कम्त मुश्तिरे से परान माता रे प्रत्येक रोग के नराम नया पाओ को ही तापम में रममा की विकृत मनो रहती हो अथवा यार पार दस्त की बनाने की इसमें पूर्व शनि अधिक प्रशंसा पर्ष पम् दासत पाया फरती दो पार शीघ्र ही उता महा- परीपा कर रेमिये । इस मेल में मिट्टी का मेल या किसी हानि. anAmAR पारक बस्तु का मरोग सादित पापा फोगा.. कहॉ से पत्रमा चाहे तो परीक्षा फीजिये। पीमत दिया नाममा । यदि माप पहिले बारीशी गरीने पोयल PI). मे सने -भाने का सिर भाग नमूना मुस मैंगा मापी शीगी 1).. पाम्नु या पिक (प भमते समय सरस्पती का माम लिय) मगर मने लिए...नवरी मकर मोरे मारो एफ सुपर पर मनगम पम्पहार में दी पता-वेद्यराज घी० पार० शर्मा आपणी । एमोर ग मारपसा नियम पा पापपास्टय पनि पानी. जम्म् यम्य। गीपत्र गा रेया। पाच पम्मिाचरम पर्मा, मानिस, पारम्पदाला घाममा चापपा (KASIA) वि.मरनपुर। Manver.