पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/९०

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सिंख्या ) प्रसिर गायक मोलादा। पात्र मिस्टर रमायवरमां उसके सम्पादक है ।ये में जा पहुँचे जहां घसीरेखा रहता था। परन्तु । मामी गयेये हैं। निजाम हैदराबाद से माप सूय यहाँ आने पर मालूम हुमा शि घसीटेग्यो किसी को हित हो चुके हैं। भाप इस समय लन्दन में हैं। भी गाना न मिनाता था। सीनने की इण से पिके कई सारी भी भापके साथ हैं। यहाँ पाप कोई उसके पास तफ न जाने पाता था। अप पनी सङ्गीत-पिया का कैशल भी दिपा रहे हैं या ! र सूफी मत के सिद्धान्तों का प्रचार भी कर घसीटेम्पा का दरपान एक अफीमधी था। राप्त को पही दरयाज़े पर रहता था। मौलाएरश में मिस्टर इनायतम्या सूफ़ी की सम्पादित पत्रिका उससे दोस्ती पैदा कर ली। उससे मालूम दुना कि माम मी "सूफी" है । यह मैंगरेजी में निकलती घसीटेस्यां रात को १२ बजे के बाद गाना है। । उसके तीसरे प्रमें इनायतमा के पितामह मालाश रोज़ गस को पहुंचने पर घमीटे फा सारा का जीवनचरित निकला है । उसका गाना सुनने लगे। रात की ये जो सुनत दिन को गंश सुन लीजिए। अपने घर उसका प्रयास करते । फुछ ही दिनों में मामास्दा का जन्म मियानी के एक जमादार मीलाएरश का अभ्यास पढ़ गया । ये वध गाने घर, १८३३ ईसंघी में, हुमा । बड़े होने पर उन्हें स्टगे। जो लोग उनके घर के पास मे पिलते पे सरत का साफ कुमा। ये भयो पहलयान पनने उनका गाना मुन कर माह आते । ओ इस कला के की चेष्टा करने लगे। इसी समय एफ सूफी फकीर मानने पाले थे उन्हें मोल्लास्ता पार घसीटेगरी मयानी माया । मालाश उससे मिले पार उसकी के गापम में प्रपूर्प साहय मालूम दाता । धीरे धीरे पी सेया-शुम्रपा फी । फकीर ने कहा. गामा शहर में चर्चा होने लगी कि यह एफ. पार जानते होता कुछ मुमायो । मागास्दश में उत्सर घसीटेम्या पैदा हो गया है। यमीटेगों को भी इसकी या कि पाकायदा गाना मा जानता मदी, पर कुछ म्यषर हुई। उसने कहा. यह मेरा साथीदार कहाँ रें मुझे मार याद६। उ म भापको मुमाता मे मा गया। उससे म गहा गया। एक दिन या. । फकीर उन शेरों की मुम कर बहुत खुश हुआ। मौसाया के मकान के पास से आ निकला को उसने कहा, मुम्हारा गला बहुत प्रथा है। मुम मायाममदा का गाना मुन कर यह फाफ उठा। पा. गहरयान पनने की प्रेमा दो। प्रयो गायक मकान के भीतर घलागया। मोसायरा में उमे पादर- मने की चेष्टा करो। यही परिश्रम मे मुम नामी पूर्पक पिटाया पर अपना गाना मुनाया। मुन कर यार यिया जायगे। मौलारा में फार की प्रामा बहुन पुश हुा । उमे मम ही मन मदा पापयर्थ मान ली। फीर उन्हें प्राशीर्याद देकर चला गया। प्रा । उमकी समझ में यद पात न माई किमीला मालामाता में गाना सीगने की प्रमिमा की। पखा का गामा ठीक पैमा ही कोई #मा कि सर मिगपे कान ! उम जमाने में जिमे जो विपा उसानिम का है। जब यह भेद पार किमी सरह पा करवा पाती थी पद उमे किसी का पताता दी मालूम तान दंगा मा उमन मायापरा में था। बनाना भी था तो उस जो जन्म भर अपने उमपा पाग्य पूछा-- उस्ताद की मेया फरे । माला में मुना किघमीरे- धीरेग्गार मेगनी कार्फ यह तो पता. का मामला एफ. पादमी गाने की कमा पात मच्च एशि प्रापय स्पद नहै मानता है। घर मे पम दिये पर उम शहर मौलाया । माफ़ कीजिए । पाप मुझ में