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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१०५

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अनुपम मिश्र

में विकास के उसी ढांचे को अपनाया गया है जो पर्यावरण के क़ायमी उपयोग ढूंढ़े बिना पर्यावरण बिगड़ता ही जाएगा। ग़रीबी-ग़ैरबराबरी बढ़ेगी, सामाजिक अन्यायों की बाढ़ आएगी। समाज का एक छोटा-सा लेकिन ताक़तवर भाग बड़े हिस्से का हक छीन कर पर्यावरण खाता रहेगा, बीच-बीच में दिखाने के लिए कुछ संवर्धन की बात भी करता रहेगा। खाने और दिखाने के इस फ़र्क को समझे बिना 5 जून के समारोह या पूरे साल भर चलने वाली चिंता एक कर्मकांड बनकर रह जाएगी।

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