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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/११५

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अनुपम मिश्र


में बताया गया है कि इस खेती से कुल खाद्यान्न का 42 प्रतिशत उत्पादन हो रहा है। बड़े-बड़े बांधों से सिंच रही खेती से उगने वाली 85 प्रतिशत फ़सल कहां जाती है, यह समझ में नहीं आ सकेगा।

देश के सिंचित इलाक़ों में पैदा हो रही फ़सल का एक बड़ा भाग रोकड़ ख़रीद फ़सलों का है। रोकड़ फ़सल खाने के काम नहीं तिजोरी भरने के काम आती है। और इस तरह भरी हुई तिजोरी उन्नत और बनावटी खाद, कीड़ेमार दवाओं खरपतवारों से कीड़ों को ख़त्म करने में फिर से खाली हो जाती है। इस तरह की आधुनिक खेती में कुछ थोड़े से लोग कमाते है शेष किसान गंवाते ही रहते हैं। यहां-वहां उधर किसान आंदोलन का असंतोष और उसके पीछे खेती के खपत मूल्य के आधार पर फ़सल का दाम तय करवाने की मांग का क्षेत्र ब्योरा ज़्यादातर आधुनिक सिंचित क्षेत्रों में उभरा है। यह संयोग नहीं है, रोकड़ फ़सल को बोने-बेचने की मजबूरी से लेकर मोह तक का अनिवार्य नतीजा है।

ग़नीमत थी कि बारानी का इलाक़ा यानी एक तरह से तीन चौथाई देश खेती को धंधे में बदलने वाली आधुनिक बुराइयों से बचा रहा है।

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