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विभागों में भटक कर पुरे तालाब


'जब गणेशजी इस तालाब में पूरे नहीं डूब पाएंगे तो समझ लेना कि गांव पर संकट आने वाला है', सुपारी के पत्तों की टोपी पहने उस आदमी ने अपने दादाजी की चेतावनी दुहराते हुए जोड़ा था कि पिछले साल गणेश-उत्सव में कुछ ऐसा ही हुआ था।

महाराष्ट्र से जुड़े-कर्नाटक के हिस्से में इस तालाब पर आया संकट देश पर छा रहे पानी के संकट की तरफ़ इशारा कर रहा है। गांव-गांव में, क़स्बों में और शहरों तक में सिंचाई से लेकर पीने के पानी तक का इंतज़ाम जुटाने वाले तालाब आज बड़े बांध, बड़ी सिंचाई और पेयजल योजनाओं के इस दौर में उपेक्षा की गाद में पट चले हैं। वर्षों तक मज़बूती से टिकी रही अनेक तालाबों की पालें आज बदइंतज़ामी की 'पछवा हवा' में ढह चली हैं।

कर्नाटक में मलनाड क्षेत्र की सारी हरियाली और उससे जुड़ी संपन्नता वहां के तालाबों पर टिकी थी। सिंचाई विभाग वाले बताएंगे कि 'न जाने कब और किसने ये तालाब बनाए थे। पर थे ये बड़े गज़ब के। ऊंची-नीची ज़मीन और छोटे-छोटे पहाड़ों के इस इलाक़े में हर तरफ़ पानी का ढाल देख कर इनकी जगह तय की गई थी। पहाड़ की चोटी