पर एक बूंद गिरी और वह आधी इस तरफ़ बहे और आधी उस तरफ़ तो दोनों तरफ़ उसे अपने में समा लेने वाले तालाब मिल जाएंगे। लेकिन वह पुराना ज़माना चला गया। सिंचाई के नए-नए तरीक़े आ गए हैं।'
नए माने मनवाए जा रहे तरीकों की ज़िम्मेदारी उठाने वाले नेता और विभाग अपने इस नए बोझ से अभिभूत हैं। वे जानना ही नहीं चाहते कि उनके कंधे बहुत ही नाजुक हैं। और उनके गर्वीले बोझ को दरअसल दूसरे लोग ढो रहे हैं। ज़माने के नए तरीकों की ढोल पीटने के बावजूद आज भी कई इलाकों में दम तोड़ रहे इन्हीं तालाबों के बल पर गांवों की व्यवस्था टिकी है। मलनाड के इलाके में 54 प्रतिशत सिंचित खेती तालाबों से पानी ले रही है। चेल्लापु शिरसी में यह प्रतिशत चौंकाने की हद तक यानी 97 प्रतिशत है। सागर तालुके में गन्ने की 'आधुनिक' खेती का आधा हिस्सा पुराने तालाबों पर टिका है।
मलनाड के तालाब यों अपेक्षाकृत छोटे हैं और दस से चौदह एकड़ तक के आयाकट (कमांड क्षेत्र) के। पर इस इलाके से पूरब में बढ़ते जाएं तो तालाबों का आकार बढ़ता जाता है। शिमोगा में औसत आकार 84 एकड़ आयाकट तक मिलेगा। कहीं-कहीं यह 500 एकड़ तक छूता है। कर्नाटक भर में अलग-अलग तरह की ज़मीन और पनढाल को ध्यान में रख कर कुल मिला कर 34,000 से भी ज़्यादा तालाब हैं। इनमें से कोई 23,000 तालाबों के बारे में छिटपुट जानकारी यहां-वहां दर्ज मिलती है। 10 से 50 एकड़ के 16740, 50 से 100 एकड़ वाले 1363 और 100 से 500 एकड़ आयाकट वाले कोई 2700 तालाब घोर उपेक्षा के बावजूद टिके हुए हैं।
यह उपेक्षा कोई दो-चार साल की नहीं, कम-से-कम 150 साल से चली आ रही है। गाद से पटते जा रहे इन तालाबों की जानकारी देने वाली रिपोर्टों पर भी इन्हीं की टक्कर पर धूल चढ़ती जा रही है। इस
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