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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१२१

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अनुपम मिश्र


कर लोक कल्याण विभाग को सौंपे गए। बिल्लियां झगड़ नहीं रही थीं फिर भी उनके हाथ से रोटी छीन कर 'बंदरबांट' करने का ऐसा विचित्र क़िस्सा और शायद ही कहीं मिलेगा।

आज ये तालाब धीमी मौत की तरफ बढ़ते ही चले जा रहे हैं। इनमें प्रतिवर्ष 0.5 से लेकर 1.5 प्रतिशत गाद जमा हो रही है। इन तालाबों से लाभ लेने वाले गांव आज भी अंग्रेजों के जमाने की तरह पानी-कर चुकाए चले जा रहे हैं। सन् 1976 में पानी-कर में 50 से 100 प्रतिशत की वृद्धि भी की जा चुकी है पर इस बढ़ी हुई कमाई का एक भी पैसा इन तालाबों पर खर्च नहीं किया जाता है। ख़ुद सरकारी रिपोर्टों का कहना है कि इस क्षेत्र के किसान कर चुकाने में बेहद नियमित हैं।

पिछले दिनों कर्नाटक के योजना विभाग ने इन तालाबों का कुछ अध्ययन किया है। केवल 6 हफ्ते में विभाग के सर्वश्री एसजी भट्ट, रामनाथन चेट्टी और अंबाजी राव ने राज्य के 34,000 तालाबों में से कोई 22,000 तालाबों के बारे में एक अच्छी रिपोर्ट बनाई थी। उन्होंने अनेक वर्षों पहले बने इन तालाबों की पीठ थपथपाई है और इन्हें फिर से स्वस्थ व स्वच्छ बनाने का खर्च भी आंका है। 22891 तालाबों से गाद हटाने, उन्हें साफ़ करने के लिए कोई 72 करोड़ रुपए की ज़रूरत है। 'पर इतना पैसा कहां से आएगा'। जैसा सरकारी जवाब सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसे जवाब के बाद यह तो कहना चाहिए कि इन तालाबों से सिंचाई कर लेना छोड़ दो। जब मरम्मत ही नहीं तो कर किस बात का? तब किसान मरते हुए इन तालाबों को अपने आप, अपने श्रम से, चंदे से, अपनी सूझबूझ से पुनर्जीवित कर लेंगे। दो महीने की लंबी बीमारी से उठ कर आए मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े दो सौ वर्षों से बीमार रखे गए तालाबों और उन तालाबों से जुड़े किसानों का, गांवों का दर्द अब भी नहीं समझ सकेंगे तो कब समझेंगे?

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