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गोपालपुरा: न बंधुआ बसे, न पेड़ बचे


तालाबों से शुरू हुआ काम आज बढ़कर एक सौ तीस तालाबों तक पहुंचने वाला है। पर इस क़िस्से को अभी यहीं छोड़ दें।

वापस आएं मुख्य क़िस्से पर। तालाब के काम में सफलता मिलने के बाद गोपालपुरा के लोगों ने इन तालाबों के जलग्रहण क्षेत्र में पेड़ों का काम उठाया। उजाड़ व बंजर पड़ी गांव की ही इस ज़मीन पर पंचायत ने प्रस्ताव पास कर पेड़ लगाने का फैसला किया। पेड़ों की रखवाली के लिए चारों तरफ़ पत्थर की मज़बूत दीवार बनाई। सैकड़ों गड्डे खोदे, पौधे लगाए और फिर उनकी देखरेख के लिए गांव की तरफ़ से ही एक वन रक्षक की भी नियुक्ति की। लोगों के लगाए वन में चोरी करना, कटाई-छंटाई करना अपराध घोषित किया गया।

इस अपराध का दंड रखा गया और ऐसे अपराधों को देख कर चुप रह जाने की सजा भी गांव ने आपस में बैठ कर तय की। यह सारी व्यवस्था गांव की सरकारी पंचायत ने नहीं, बल्कि बरसों से चली आ रही गांव की अपनी पंचायत ने की थी।

अपनी ही ज़मीन पर अपने हरे-भरे भविष्य का जंगल खड़ा करने में भी कहीं सरकार 'अवैध' तालाब की तरह अवैध जंगल का तर्क न रख दे इस ख़्याल से इस काम की भी सूचना जिले के राजस्व विभाग को दी गई और प्रार्थना की गई कि यह ज़मीन बाक़ायदा गांव के वन के नाम कर दी जाए।

गोपालपुरा और ज़िला मुख्यालय की दूरी कोई बहुत तो नहीं है-बस से दो घंटे, सरकारी जीप से शायद एक ही घंटा पर सरकार की तरफ़ से कोई कभी गोपालपुरा नहीं आया। व्यस्त रहते हैं सरकारी अधिकारी। फिर एक ज़िले में कलेक्टर के नीचे न जाने कितने ढेर सारे गांव आते होंगे। पर कभी जन अधिकारियों ने यह भी सोचा होगा कि

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