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गोपालपुरा: न बंधुआ बसे, न पेड़ बचे


पहली बरसी पर इस सबको याद किया जा रहा है तो सिर्फ इसलिए कि ये सब लोग इस मौके पर दुबारा उस गांव में जाएं। एक बरस पहले जिन्होंने बढ़ चढ़कर कहा था, लिखा था वे अब ठंडे दिमाग़ से अपने किए को देखें। वहां घूमें, संस्था से, गांव से, बंधुआओं से मिलें। उस मलबे को हटाएं, जिसके नीचे एक ग्रामीण पहल जिंदा दफ़न हो गई थी। अभी कुछ दिन बाक़ी हैं बरसी के। पक्की तारीख बताना ज़रूरी नहीं। जिन्हें गोपालपुरा जाना चाहिए उन्हें तारीख़ अच्छी तरह से याद है। वे सब अकेले ही जाएं, पर्यावरण वालों को साथ नहीं लें। फिर उन्हें कोई बहकाएगा नहीं। वहां जाकर उन्हें पता चल सकेगा कि न बंधुआ बसे, न पेड़ बचे।

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