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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१३९

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अनुपम मिश्र


में सबसे ऊंचा दाम सामाजिक वानिकी का था। हम सब उसमें जुट गए, बिना यह बहस किए कि असामाजिक वानिकी क्या थी। फिर एक दौर आया बंजर भूमि विकास का। अंग्रेज़ी में यह 'वेस्टलैंड डेवलपमेंट' था। तब भी बहस नहीं हो पाई कि 'वेस्टलैंड' है क्या। ख़ूब साधन और समय इसी 'साध्य' में वेस्ट यानी बर्बाद हो गया। बंजर जमीन के विकास का सारा उत्साह अचानक अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया और उसके बदले हम सब फ़िलहाल 'वॉटरशेड डेवलपमेंट' में रम गए हैं। इस नए कार्यक्रम के हिंदी से सिंधी तक अनुवाद हो गए हैं-जलग्रहण क्षेत्र शब्द भी चल रहा है जलागम क्षेत्र भी। थोड़े देसी हो गए तो मराठी वालों ने 'पानलोट' विकास नाम रखा लिया है पर मूल में एक विचित्र वॉटरशेड की कल्पना ही है-इस सबके पीछे।

'ज्वाइंट फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट' दूसरा नया झंडा है। इसमें भी हमारी हिंदी प्रतिभा पीछे नहीं है-'संयुक्त वन प्रबंध कार्यक्रम' फल फूल रहा है। यदि हम अपनी संस्था को ज़मीन से जुड़ा मानते हैं तो हो सकता है हमें 'संयुक्त' शब्द पर आपत्ति हो, तब हम इसे 'सांझा' शब्द से पटकी खिला देते हैं-नाम कुछ भी रखें काम यानी साध्य वर्ल्ड बैंक-हिंदी में कहें तो विश्व बैंक ने तय किया है। साधन भी उसी तरह की संस्थाओं से आ रहे हैं।

यह विवरण मज़ाक़ या व्यंग्य का विषय नहीं है। सचमुच दुख होना चाहिए हमें। इस नए काम की इतनी ज़रूरत यदि आ भी पड़े तो जे.एफ.एम. यानी ज्वाइंट फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट का काम उठाते हुए हमें यह तो सोचना ही चाहिए कि इस 'ज्वाइंट' से पहले 'सोलो' मैनेजमेंट किसका था? कितने समय से था? वन विभाग ने अपने कंधों पर पूरे देश के वन प्रबंध का बोझ कैसे उठाया, उस बोझ को लेकर वह

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