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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१७८

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राजरोगियों की ख़तरनाक रज़ामंदी


लाभ होगा। इससे औद्योगिक विकास होगा। भट्टाचार्य ने कहा था कि दामोदर का प्रवाह रोकोगे तो वहां से नीचे डेल्टा तक असर होगा। कोलकाता बंदरगाह नष्ट होगा। उसमें जहाज़ नहीं आ पाएंगे। उसकी गहराई कम हो जाएगी। जिस प्रवाह से सिल्ट बाहर जाती है, उसे महंगे यंत्रों के जरिए बाहर निकालना पड़ेगा। करोड़ों रुपए खर्च होंगे, नदी की गहराई कृत्रिम तरीके से बढ़ाने के लिए। यह भी चार-पांच साल कर पाओगे। फिर तब तक इतनी मिट्टी आ चुकी होगी कि यह भी बंद करना पड़ेगा। तब आपको बंदरगाह बदलना पड़ेगा। तब तक बांग्लादेश नहीं बना था। भट्टाचार्य ने यह भी कहा था कि इस बांध के कारण पड़ोसी देश के भी साथ आपके संबंध बिगड़ते जाएंगे।'

तटबंध और टेक्नोलॉजी से समुद्र का कोई संबंध नहीं होता, वह अपनी विशेष शक्ति रखता है। उसमें मनुष्य हस्तक्षेप करे, विज्ञान के विकास के नाम पर तो सचमुच प्रकृति उसे तिनके की तरह उड़ा देती है। सुंदरवन ऐसे ही समुद्री तूफानों को रोकते हैं। पाराद्वीप का सुंदरवन नष्ट हुआ इसलिए उड़ीसा में चक्रवात आया। इसके आगे 'सुपर' विशेषण लगाना पड़ा था। अथाह जन-धन हानि हुई। अथाह बर्बादी। यह सब देखकर लगता है कि प्रकृति के ख़िलाफ़ अक्षम्य अपराध हो रहे हैं। इनको क्षमा नहीं किया जा सकता। इसकी कोई सज़ा भी नहीं दी जा सकती। नदी जोड़ना उस कड़ी में सबसे भयंकर दर्जे पर किया जाने वाला काम होगा। इसको बिना कटुता के जितने अच्छे ढंग से समझ सकते हैं, समझना चाहिए। नहीं तो कहना चाहिए कि भाई अपने पैर पर तुम कुल्हाड़ी मारना चाहते हो तो मारो लेकिन यह निश्चित पैर पर कुल्हाड़ी है। ऐसा करने वालों के नाम एक शिलालेख में लिख कर दर्ज कर देने चाहिए और कुछ विरोध नहीं हो सके तो किसी बड़े पर्वत की चोटी पर यह शिलालेख लगा दें कि भैया आने वाले दो सौ सालों तक के लिए अमर रहेंगे ये नाम। इनका कुछ नहीं किया जा सका।

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