पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१८३

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अनुपम मिश्र


होगी। कभी एक और प्रश्न उनसे पूछा गया था, 'अंग्रेज़ी सभ्यता के बारे में आपकी क्या राय है।' गांधीजी का उत्तर था, 'यह एक सुंदर विचार है।'

अहिंसा की वह नई सुगंध गांधी चिंतन, दर्शन में ही नहीं उनके हर छोटे-बड़े काम में मिलती थी। जिससे वे लड़ रहे थे, उससे वे बहुत दृढ़ता के साथ, लेकिन पूरे प्रेम के साथ लड़ रहे थे। वे जिस जनरल के ख़िलाफ़ आंदोलन चला रहे थे, न जाने कब उसके पैर का नाप लेकर उसके लिए जूते की एक सुंदर जोड़ी अपने हाथ से सी रहे थे। पैर के नाप से वे अपने शत्रु को भी भांप रहे थे। इसी तरह बाद के एक प्रसंग में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर पूना की जेल में भेज दिया था। जेल में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तिका 'मंगल प्रभात' लिखी। इसमें एकादश व्रतों पर सुंदर टिप्पणियां हैं। ये व्रत है अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शरीरश्रम, अस्वाद, अभय, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी और अस्पृश्यतानिवारण। गांधीजी ने इस सूची में से स्वदेशी पर टिप्पणी नहीं लिखी। एक छोटा-सा नोट लिखकर पाठकों को बताया कि जेल में रहकर वे जेल के नियमों का पालन करेंगे और ऐसा कुछ नहीं लिखेंगे जिसमें राजनीति आए। और स्वदेशी पर लिखेंगे तो राजनीति आएगी ही।

स्वदेशी का यही व्रत पर्यावरण के प्रसंग में गांधीजी की चिंता का, उसकी रखवाली और संवर्धन का एक बड़ा औज़ार था। इस साधन से पर्यावरण के साध्य को पाया जा सकता है, इस बात को गांधीजी ने बिना पर्यावरण का नाम लिए बार-बार कहा है। पर यह इतना सरल नहीं है। ऊपर जिस बात का उल्लेख है वह यही है। इस साधन से तथ्य को पाने के लिए साधना भी चाहिए। गांधीजी साधना का यह अभ्यास व्यक्ति से भी चाहते थे, समाज से भी। गैर ज़रूरी ज़रूरतों को कम करते जाने का अभ्यास बढ़ सके-व्यक्ति और देश के स्तर पर भी यह कठिन काम लगेगा, पर इसी गैर ज़रूरी खपत पर आज की असभ्यता टिकी हुई है।

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