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पर्यावरण का पाठ


तो फिर जिज्ञासा उपर्युक्त तीनों बिंदुओं को लेकर है:

1.हिंदी में पर्यावरण संबंधी मौलिक व गंभीर साहित्य के गहरे अभाव की स्थिति के पीछे किस तरह के कारण आपको सक्रिय लगते हैं और इनका सामना करने के लिए आप कौन से उपाय व सुझाव प्रस्तावित करना चाहेंगे?

2.हिंदी में लिखने की मूल प्रेरणा व प्रवृत्ति किन कारणों से हुई और पुस्तकें लिखते हुए किस तरह के संशयों और कठिनाइयों का सामना आपने किया?

3.पश्चिमी शिक्षा-दीक्षा के असर में जिस तरह की अनुवादित पदावलियां हम बना रहे हैं उसके बरक्स हमारा अपना स्वदेशी जीवन दर्शन व भाषा-संसार जो सच्चा विकल्प प्रकट करता है उसको लेकर आपकी जागरूकता व सोच ने किस तरह से ठोस आकार ग्रहण किया?

4.सारतः यह कि भाषा और पर्यावरण को लेकर आप किस तरह की सैद्धांतिकी रचना चाहेंगे।

पर्यावरण साहित्य हिंदी में नहीं है यह तो लगभग ठीक ही है। जो कुछ उपलब्ध है वह अंग्रेज़ी का अनुवाद है। और अंग्रेज़ी का अनुवाद होना चाहिए इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन ज़्यादातर उन चीज़ों का अनुवाद है जो हमसे बहुत परे हैं। हमारे संदर्भ नहीं हैं। हमारे विषय नहीं हैं। हमारी बहस नहीं है। उदाहरण के लिए सोशल फ़ॉरेस्ट्री आई हमारे यहां। उस पर पहले अंग्रेज़ी में साहित्य बन गया। फिर उसका हिंदी में अनुवाद होकर सामाजिक वानिकी में बदल गया। ऐसे हिंदी के साहित्य को मैं अंग्रेज़ी का ही मानता हूं-लिपि बदली उसकी; विचार नहीं बदला।

हमारी संस्कृति में पर्यावरण को लेकर मौलिक साहित्य रहा है वह

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