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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२०६

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पर्यावरण का पाठ


वहां के सारे सदस्यों के बीच में एक अलिखित संविधान की तरह फैल जाता था। हमको ये-ये काम यहां करने हैं; इससे हमारा जीवन आगे चलेगा। समाज के दुख-सुख का भी ख्याल रखा जाता था। उसके सुख बड़े और दुख कम हों। अगर किसी इलाके में पानी की कमी हो तो पानी का इंतज़ाम कैसे किया जाए। जंगलों की ज़रूरत कुछ ज्यादा है इस इलाके में तो जंगल कैसे ज़्यादा-से-ज्यादा पनपाए जाएं। लोगों को कैसे प्रेरणा दी जाए कि तुम्हारे घर में यह अच्छा काम हुआ तो तुम पेड़ लगाओ या जंगल लगाओ रखवाली करो। या तालाब खोदो।

लेकिन विकास शब्द कैसे आया अपने जीवन में, भाषा में, इसका मुझे अभी बहुत पक्का अंदाज़ नहीं है। यह शब्द अंग्रेज़ी के डेवलपमेंट से आया है, इसमें कोई शक नहीं है। आप अगर पुराने नेताओं के भाषण पढ़ेंगे, संपूर्ण गांधी वाङ्मय जो कई खंडों में चलता है उसमें, विकास शब्द आसानी से नहीं मिलना चाहिए। देश की चिंता गांधीजी को कम नहीं थी, लेकिन एक भी जगह उन्होंने यह नहीं कहा कि इस देश का विकास करना है। यह इलाका बड़ा पिछड़ा है। इस शब्द ने अपने समाज के माथे पर एक खास तरह की मोहर लगा दी है और यह प्रायः पिछड़ेपन की मोहर है। उसमें हम कुछ विकास के टापू दिखाते हैं। किसी भी स्वस्थ समाज में विकास शब्द के बदले उसकी समस्याएं क्या हैं उनको दूर करने की कोशिश अपने-अपने कर्तव्यों से उठती है बजाय एक बड़ी पंचवर्षीय योजना के। विकास वाला शब्द जबसे आया है तबसे मैं ऐसा मानता हूं कि अविकसित इलाके ज़्यादा बढ़े हैं, विकसित इलाकों के बदले और जिनको हमने विकसित माना बाद में पता चला उन क्षेत्रों ने भी अपनी समस्याएं हल नहीं की। आपने उसे बहुत अच्छे से रखा है कि यह उजले-अंधेरे का सारा मामला है। हमने एक हिस्से को उजले में रखा माना और एक को अंधेरे में रखा हुआ माना और अंतत: मालूम चला कि अंधेरे

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