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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२०७

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अनुपम मिश्र


वाला हिस्सा ही बढ़ता चला जा रहा है। उजले वाले हिस्से की दिल्ली में कभी भी पानी की कमी नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में कभी भी हवा ख़राब नहीं होनी चाहिए। लेकिन धीरे-धीरे हमें यह लग रहा है कि ये सब इलाके भी उतने उजले नहीं रह जाएंगे।

खुद विकास का मामला बड़ा विचित्र है। एक समय में विकास की बात हुई, फिर उससे जब कुछ नुकसान आने लगे तो एक और आपने नारा सुना होगा कि विनाश रहित विकास। अब विकास में कोई और विशेषण लगाने की ज़रूरत ही नहीं होनी चाहिए। ऐसा नहीं होगा कि निंदा रहित तारीफ, प्रशंसा यानी प्रशंसा। तो विकास यानी विकास पर उसके आगे विशेषण लगाना पड़ा कि विनाश रहित विकास। फिर उसके बाद एक और आ गया सस्टेनेबल डेवलपमेंट, सातत्य वाला विकास। उसका कुछ अंग्रेज़ी-हिंदी सब कुछ अभी तक घालमेल है-उसमें से कुछ निकल नहीं रहा। मैं यह मानता कि अभी इन महान लोगों के मन में उनकी योजना और स्वभाव में ही सातत्य नहीं है, फिर उनके विकास में तो आ ही नहीं सकता। ये तो एक तरफ़ चलते हैं और बाक़ी सबको कहते हैं तुम भी इस दिशा में चलो फिर वहां टकरा जाते हैं। फिर कहते हैं अच्छा भाई अब रास्ता बदलना होगा। दाएं घूम जाते हैं तो एक बड़ी विचित्र सी स्थिति में सारा समाज दाएं-बाएं घूमता रहता है। जो उसके मुखर लोग हैं, वे जिसको विकास मानते हैं अभी तक उसको परिभाषित नहीं कर पाए हैं। बाक़ी समाज इस समय अभिशप्त है उनके पीछे चलने के लिए। या फिर उसमें एक बहुत बड़ा हिस्सा चुपचाप खड़ा है। चल नहीं रहा है तो हम उसको अविकसित कह देते हैं।

दूसरा इस विकास के कर्ताधर्ताओं के पास कभी भी इतनी राशि नहीं होगी, बुद्धि तो है ही नहीं। इतनी राशि भी नहीं होगी कि वे पूरे देश को सड़कों से पाट दें, पानी का इंतज़ाम कर दें, पूरे देश के वन ठीक कर लें।

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