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पर्यावरण का पाठ


काट लाते। वो तो वापस आ गये। तो इस तरह से किसी एक बड़ी घटना के कारण आंदोलन जन्म लेते हैं लेकिन फिर धीरे-धीरे उनकी अपनी दिशा बदलती है रफ़्तार बदलती है। चिपको के साथ करीब दस साल काम करने पर मैं ऐसा मानता हूं कि योजना के स्तर, सरकार के स्तर पर, वैज्ञानिकों के स्तर पर हिमालय को बचाने का एक बहुत बड़ा अभियान इसके कारण चला। चिपको की बातों को लगभग सबने स्वीकार किया। अब फिर किसी तरह से कोई चीज़ अगर थोड़ी कम हो जाए तो मैं ऐसा मानता हूं कि पूरे समय जैसे घुड़सवार घोड़े पर नहीं बैठा रहता। उसको कभी उतरना भी पड़ता है, थोड़ा आराम भी करना पड़ता है। तो हमें अपने आंदोलनों के बारे में भी यह मानना चाहिए कि वे एक रफ़्तार से दौड़ते हैं फिर थक भी जाते हैं, छाया में थोड़ा आराम भी करते होंगे। किस वजह से गायब हो जाते है, इसका कोई एक कारण हम पकड़ नहीं सकते हैं। आंदोलन के भीतर की भी कमी हो सकती है और कभी बाहर भी कमी हो सकती है।

1. मनुष्य की पर्यावरण के प्रति बढ़ती संवेदना के दौर में शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण और पर्यावरण के क्षेत्र में शिक्षा के योगदान को आप किस तरह से देखते हैं?

2. वर्तमान पाठ्यक्रम की संरचना व गठन को लेकर जो विवाद है उन सबके बीच स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर पर्यावरण विषय को पाठ्यक्रम में समाविष्ट करने की प्रासंगिकता पर अपनी टिप्पणी से अवगत कराएं?

3. हमारे यहां सदियों से तकनीकी शिक्षा ने श्रुति माध्यम के तहत अवस्थित रहते हुए एक लंबा सफ़र तय किया है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह ज्ञान मौखिक तरह से ही हस्तांतरित हुआ है। समय व स्पेस में परिवर्तन व परिष्कार के पश्चात

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