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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२३५

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अनुपम मिश्र


ने क़रीब-क़रीब दो हज़ार गांवों में पानी का काम शुरू किया। अब वे चार हज़ार गांवों में फैलना चाहते हैं। इतनी बड़ी कोई संस्था नहीं है। इतनी बड़ी कोई सरकारी पहल नहीं। पाटीदार समाज ने अपने आप को एक साल में संगठित करके दो हजार गांव में फैलाया और क़रीब-क़रीब 150 करोड़ रुपया, 1.5 अरब चंदा इकट्ठा किया। यह जाति की एकता के कारण हुआ होगा। उसमें वह गांव भी शामिल है, जिसमें उनकी जाति नहीं है। पर्यावरण के कारण एक हुए, उनको पानी की चोट पड़ी थी। वे हीरों के व्यापारी हैं। उन्होंने देखा कि उनके पास हीरा है, पैसा भी है पर पानी कहीं नहीं बचा। पानी लगातार कम हुआ है गांव में तो उनको लगा कि इन दोनों को फिर से जोड़ना चाहिए। यह एक उदाहरण है। जाति द्वारा जोड़ने का। धर्म ने भी समाज को बांटा है या जोड़ा है यह पक्का नहीं कह सकते। धर्म तो बाद की बात है, संप्रदाय भी समाज को जोड़ कर रख सकते हैं। परिस्थति कैसी है यह देखना पड़ता है। संप्रदाय या धर्म तोड़ने का ही काम करेगा या जोड़ने का ही काम करेगा ये दोनों ही आवश्यक नहीं है। कभी वह तोड़ भी सकता है कभी वह जोड़ भी सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमें बाड़मेर में एक ओरण में देखने को मिला। ओरण के मंदिर की पूजा मुसलमान पुजारी करते हैं। उनसे हम लोगों ने पूछा कि इस्लाम में तो बुत-परस्ती को अच्छा नहीं मानते। यह तो मूर्ति पूजा हुई वह भी हिंदू देवी की हुई। उन्होंने बड़ी कड़क आवाज़ में उत्तर दिया कि यह देवी साक्षात देवी है, बुत नहीं, पत्थर की नहीं। ऐसा उत्तर शायद सनातन हिंदू भी नहीं देगा कि मैं जिस पत्थर की पूजा कर रहा हूं, वह पत्थर नहीं है। मुसलमान कहे कि मैं तो सामने जो देवी बैठी है उनकी पूजा कर रहा हूं यानी उसमें प्राण है। मुझे लगता है इसका कारण है कि ओरण इतना ज़रूरी है उनके लिए। उस इलाके के गोधन के लिए। चराई के लिए। अपने जीवन के लिए। वहां हिंदू हो या मुसलमान, वह उस ओरण

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